Tuesday, November 6, 2012

फिर ये आँख के आँसु .आँखों में हे सहम जाता है

इन चुप चाप सी तनहाईयों में ,जैसे कोई पास आता है 
कुछ इस तरह मेरे पास होने का यकीं दिलाता है 
ये दिल फिर बेकरार हो जाता है ,उनसे मिलने के खातिर 
फिर ये आँख के आँसु .आँखों में हे सहम जाता है 
अब कैसे समझाए इस दिल को 
जो उनके चले जाने का अभी भी यकीं नहीं कर पता है 
इस दिल के भी क्या गलती ,कैसे समझाऊ इस को 
इस पार नहीं उस पर नहीं ,किस पर ले जाऊ इस दिल को 
अब एक जगह ये डूब गया ,कैसे मनाओ फिर
 इस को
माना बड़ा ही नाज़ुक है .फिर समझाऊ इस को
के जाने वाले चले गए ,क्यों तू इतना उदास है
ये दुनिया बहुत बड़ी है ,चल हम अकेले नहीं है
अभी भी हमारे दिल को बहुत से लोगो के तलाश है.........
.....(.आलोक पाण्डेय .

दो वक़्त के रोटी मिले तो ठीक

  इन सहमे गरीब बच्चो का क्या होगा
.जब हम खुद के दिए नहीं जला पाते 
.हम कैसे कहे की देश का  उत्थान करेंगे 
.जब खुद को ही किसी काबिल नहीं बना पाते 
.इस आतंकी दुनिया में कब तक साँस चलाओगे
.जब अपने ही घर लूट रहे ,
.तुम कब तक उन से बच पाओगे 
.इन  बच्चो  का क्या यही आधार है 
मिले दो वक़्त के रोटी मिले तो  ठीक 
नहीं तो भूखे नगे ही सो  जाते है .
.हमने कब कहा की  आओ चलो संघर्ष करो 
पर कुछ तो इज्ज़त का ख्याल करो ,
ये भी किसी की माँ है ,बच्चे है .
.इनसे तो न बैर करो ................(अलोक पाण्डेय )