लिखने को तो बहुत कुछ था... पर नहीं लिखा... क्यूंकि वो हमेशा कहती थी तुम्हारी तो आँखे ही बोलती है... आज सोचता हू काश लिख ही देता तो "वो ख़त तो उसके साथ रहते..."
(¯`*•.¸❤ ♥►- alok .-◄♥ ❤¸.•*´¯)
‘आलोक ’ अपने आप से कब तक लड़ा करें
जो हो सके तो अपने भी हक़ में दुआ करें
दी है कसम उदास न रहने की तो बता
जब तू न हो तो ये हाल किससे बंया करे
Saturday, December 15, 2012
पहले भी लोग आए कितने ही ज़िंदगी में
पहले भी लोग आए कितने ही ज़िंदगी में वो हर तरह से लेकिन औरों से था जुड़ा सा तेवर थे बेरूख़ी के अंदाज़ दोस्ती का वो अजनबी था लेकिन लगता था आशना सा
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