तुम्हारे आने की खुसबू कैसे फ़ैल गयी है
देखो ज़रा तुम चुपके से आना
आज सारे बादल लग रहा यंही बरसेंगे
हवाओ का रुख भी कुछ इस तरह ही है
बिजली जो दिन में चार बार जाती थी
आज देखो ज़रा जाने का नाम नहीं ले रही
मारे ख़ुशी के तुम्हारा कमरा मर गया है
टेलीविज़न की ख़ुशी तो समझ ही नहीं'आ रही
जैसे तुम मेरी नहीं उस की ही सब कुछ हो
रिमोट के गाल तो देखो कैसे लाल हो गए है
देखो इन किताबो को ज़रा कैसे मचल रही है
तुम्हारे नाम के पन्नो को हवा चूम -२ जा रही है
अब इस घर की हालत ना पूछ बैठना
बता नहीं पाऊंगा
तुम्हारे आने के ख़ुशी में कैसे बत्तीसी दिखा रहे है
इस बिस्तर के होठो को तो देखो
कैसे सुर्ख लाल हो गए आज ,कलतक तो पीले पड़े थे ये
तकिये का मुह तो एक मिनट के लिए बंद ही नहीं होता
दरवाजे जो कल तक आपस में लड़ा करते थे
आज इनको देखो कैसे पलकें बिछाये बैठे है
जैसे इनका ही महबूब आ रहा हो
दीवारे जो कल तक उदास सी बेरंग बैठी थी
आज कैसे उनपे शाखे निकल आई
ओह . अब तो इन पे फूल भी खिलने लगे है
लगता है बहुत करीब आ गयी हो घर के
तुमने मुझ से झूठ कहा था ना
मेरे अलावा तुमने किसी को भी नहीं बताया
की तुम आ रही हो
और तुमने इतनी बड़ी बात क्यों छुपायी
मेरे अलावा कोई तुम्हारा महबूब नहीं
अब ज़ल्दी से आ भी जाओ
नहीं तो ये बर्तन मुझे जीने नहीं देंगे
तुम्हारे आने के बाद मै उस वक़्त का टुकड़ा
सहेज के अपने दिल में छुपा लूँगा
____________________________
चलो बाकि बाते हम तुम्हारे आने के बाद बताएँगे :)
(कुछ टूटे फूटे हिस्से मेरी कहानी के जिनके ये कुछ अंश है )
_______________________ ( आलोक )
देखो ज़रा तुम चुपके से आना
आज सारे बादल लग रहा यंही बरसेंगे
हवाओ का रुख भी कुछ इस तरह ही है
बिजली जो दिन में चार बार जाती थी
आज देखो ज़रा जाने का नाम नहीं ले रही
मारे ख़ुशी के तुम्हारा कमरा मर गया है
टेलीविज़न की ख़ुशी तो समझ ही नहीं'आ रही
जैसे तुम मेरी नहीं उस की ही सब कुछ हो
रिमोट के गाल तो देखो कैसे लाल हो गए है
देखो इन किताबो को ज़रा कैसे मचल रही है
तुम्हारे नाम के पन्नो को हवा चूम -२ जा रही है
अब इस घर की हालत ना पूछ बैठना
बता नहीं पाऊंगा
तुम्हारे आने के ख़ुशी में कैसे बत्तीसी दिखा रहे है
इस बिस्तर के होठो को तो देखो
कैसे सुर्ख लाल हो गए आज ,कलतक तो पीले पड़े थे ये
तकिये का मुह तो एक मिनट के लिए बंद ही नहीं होता
दरवाजे जो कल तक आपस में लड़ा करते थे
आज इनको देखो कैसे पलकें बिछाये बैठे है
जैसे इनका ही महबूब आ रहा हो
दीवारे जो कल तक उदास सी बेरंग बैठी थी
आज कैसे उनपे शाखे निकल आई
ओह . अब तो इन पे फूल भी खिलने लगे है
लगता है बहुत करीब आ गयी हो घर के
तुमने मुझ से झूठ कहा था ना
मेरे अलावा तुमने किसी को भी नहीं बताया
की तुम आ रही हो
और तुमने इतनी बड़ी बात क्यों छुपायी
मेरे अलावा कोई तुम्हारा महबूब नहीं
अब ज़ल्दी से आ भी जाओ
नहीं तो ये बर्तन मुझे जीने नहीं देंगे
तुम्हारे आने के बाद मै उस वक़्त का टुकड़ा
सहेज के अपने दिल में छुपा लूँगा
____________________________
चलो बाकि बाते हम तुम्हारे आने के बाद बताएँगे :)
(कुछ टूटे फूटे हिस्से मेरी कहानी के जिनके ये कुछ अंश है )
_______________________ ( आलोक )
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