भाई बटे
घर के आँगन में दिवार उठी
धीरे -२ जमीन बँटी
घर के आँगन में दिवार उठी
धीरे -२ जमीन बँटी
सब खुश थे जंहा
वँहा एक आँख नम थी
________
जिसने सब कुछ बनाया
कोने में बैठा देख रहा
छटपटा रहा
अंदर ही अंदर
…………….... एक बूढ़ा पिता
______( आलोक )_______
वँहा एक आँख नम थी
________
जिसने सब कुछ बनाया
कोने में बैठा देख रहा
छटपटा रहा
अंदर ही अंदर
…………….... एक बूढ़ा पिता
______( आलोक )_______
भावनाओं का ऐसा उदगार, जिसमें बसता हो जैसे तीनों लोक,
ReplyDeleteजिंदगी के रंगो में रंग घोलती आपकी कविता "आलोक"।
उत्कृष्ट रचना.......धन्यवाद।
भावनाओं का ऐसा उदगार, जिसमें बसता हो जैसे तीनों लोक,
ReplyDeleteजिंदगी के रंगो में रंग घोलती आपकी कविता "आलोक"।
उत्कृष्ट रचना.......धन्यवाद।
कन्हिया जी बहुत बहुत शुर्किया आप का
ReplyDeleteकन्हिया जी बहुत बहुत शुर्किया आप का
ReplyDeleteकन्हिया जी बहुत बहुत शुर्किया आप का
ReplyDeleteआलोक जी आपका बहुत बहुत धन्यावाद जो आप हमेशा हमारे पढने के लिये ऐसी ऐसी बातें लाते है जो हमारे दिल के किसी कोने में दबी सी बातें हो जैसे...!
ReplyDeleteआलोक जी आपका बहुत बहुत धन्यावाद जो आप हमेशा हमारे पढने के लिये ऐसी ऐसी बातें लाते है जो हमारे दिल के किसी कोने में दबी सी बातें हो जैसे...!
ReplyDeleteआलोक जी आपका बहुत बहुत धन्यावाद जो आप हमेशा हमारे पढने के लिये ऐसी ऐसी बातें लाते है जो हमारे दिल के किसी कोने में दबी सी बातें हो जैसे...!
ReplyDeleteकविता खूबसूरत तो है ही, सीधे दिल को छू जाती है।
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