Friday, January 2, 2015

एक बूढ़ा पिता

भाई बटे
घर के आँगन में दिवार उठी
धीरे -२ जमीन बँटी
सब खुश थे जंहा 
वँहा एक आँख नम थी
________
जिसने सब कुछ बनाया
कोने में बैठा देख रहा
छटपटा रहा
अंदर ही अंदर
…………….... एक बूढ़ा पिता
______( आलोक )_______

9 comments:

  1. भावनाओं का ऐसा उदगार, जिसमें बसता हो जैसे तीनों लोक,
    जिंदगी के रंगो में रंग घोलती आपकी कविता "आलोक"।
    उत्कृष्ट रचना.......धन्यवाद।

    ReplyDelete
  2. भावनाओं का ऐसा उदगार, जिसमें बसता हो जैसे तीनों लोक,
    जिंदगी के रंगो में रंग घोलती आपकी कविता "आलोक"।
    उत्कृष्ट रचना.......धन्यवाद।

    ReplyDelete
  3. कन्हिया जी बहुत बहुत शुर्किया आप का

    ReplyDelete
  4. कन्हिया जी बहुत बहुत शुर्किया आप का

    ReplyDelete
  5. कन्हिया जी बहुत बहुत शुर्किया आप का

    ReplyDelete
  6. आलोक जी आपका बहुत बहुत धन्यावाद जो आप हमेशा हमारे पढने के लिये ऐसी ऐसी बातें लाते है जो हमारे दिल के किसी कोने में दबी सी बातें हो जैसे...!

    ReplyDelete
  7. आलोक जी आपका बहुत बहुत धन्यावाद जो आप हमेशा हमारे पढने के लिये ऐसी ऐसी बातें लाते है जो हमारे दिल के किसी कोने में दबी सी बातें हो जैसे...!

    ReplyDelete
  8. आलोक जी आपका बहुत बहुत धन्यावाद जो आप हमेशा हमारे पढने के लिये ऐसी ऐसी बातें लाते है जो हमारे दिल के किसी कोने में दबी सी बातें हो जैसे...!

    ReplyDelete
  9. कविता खूबसूरत तो है ही, सीधे दिल को छू जाती है।

    ReplyDelete