Saturday, December 15, 2012

चले दूर तक

चले दूर तक
अजनबी रास्तों पर पैदल चलें। ........ (आलोक )

अजनबी से रास्तो पर 
कुछ दूर तलक पैदल चला 
पर कुछ न कहा 
अपनी इन तन्हाईयो के दायरे से 
बाहर निकलना चाहा 
पर निकल न सका 
इन रिवाजों के सरहदों ने 
कुछ ऐसा बांध रखा है
के हम बहुत दूर तक निकले
पर ज़िन्दगी के
राहो पे दूर तलक साथ न चल सके
कभी मजबुरियो ने
कभी अपनों ने बांध दिया
कोई ज़िक्र न छेड़ो
मेरी भूली हुई
कोई नज़्म न दोहराओ
तुम कौन हो
मैं क्या हू
इन सब बातों को
बस, रहने दो ...अब उसका जिक्र न उठाओ

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