चले दूर तक
अजनबी रास्तों पर पैदल चलें। ........ (आलोक )
अजनबी से रास्तो पर
कुछ दूर तलक पैदल चला
पर कुछ न कहा
अपनी इन तन्हाईयो के दायरे से
बाहर निकलना चाहा
पर निकल न सका
इन रिवाजों के सरहदों ने
अजनबी रास्तों पर पैदल चलें। ........ (आलोक )
अजनबी से रास्तो पर
कुछ दूर तलक पैदल चला
पर कुछ न कहा
अपनी इन तन्हाईयो के दायरे से
बाहर निकलना चाहा
पर निकल न सका
इन रिवाजों के सरहदों ने
कुछ ऐसा बांध रखा है
के हम बहुत दूर तक निकले
पर ज़िन्दगी के
राहो पे दूर तलक साथ न चल सके
कभी मजबुरियो ने
कभी अपनों ने बांध दिया
कोई ज़िक्र न छेड़ो
मेरी भूली हुई
कोई नज़्म न दोहराओ
तुम कौन हो
मैं क्या हू
इन सब बातों को
बस, रहने दो ...अब उसका जिक्र न उठाओ
के हम बहुत दूर तक निकले
पर ज़िन्दगी के
राहो पे दूर तलक साथ न चल सके
कभी मजबुरियो ने
कभी अपनों ने बांध दिया
कोई ज़िक्र न छेड़ो
मेरी भूली हुई
कोई नज़्म न दोहराओ
तुम कौन हो
मैं क्या हू
इन सब बातों को
बस, रहने दो ...अब उसका जिक्र न उठाओ
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