लड़ना हो तो लड़ो जंग ,पर गरीबी के लिए
धर्म जाती के नाम पर असहाय न फैलाईये
हिन्दू कहते हम खतरे में
मुस्लिम कहते हम खतरे में
मै तो कहता हु हम सब खतरे में
इसलिए
पहले अपने देश को तो बचाईये
जिन बच्चो के खेलने खाने के दिन है
उनसे पत्थर तो ना उठ्वायिये
मैंने कब कहा जीना छोड़ दो यारो
पर उन गरीब माँ के बच्चो पर
थोडा सा तो रहम खाईये
रोटिया सेकने का शौक है तो रखो
पर अपनी रोटिया सेकने के लिए
उनका घर तो ना जलाईये
माना कि अधियारा बहुत है यंहा
पर अब तो सूरज निकलना चाहिए
क्या इन बच्चो पे अच्छे लगते है
ये कुदाल ये फावड़े
अब तो इनके हाथो में भी
कलम और दावात होनी चाहिए
इन फूल से बच्चो को कब तक नोचोगे
इन्हें भी थोडा खिलखिलाने देना चाहिए
इनमे से भी कोई हो सकता है
अपने देश का वजीर
इनको भी तो आजमाने का मौका देना चाहिए
कब तक करोगे एक दुसरे का कत्ले आम
कभी भाई -भाई का रिश्ता भी तो निभायिये
नहीं पोछ सकते उन बच्चो के माँ के आंशु
तो कम से कम उन्हें खून के आंशु ना रुलायिये
माना की हर एक जंग को जीतना नहीं आसा
पर कुछ ही जंग जितने के लिए हाथ तो बढाईये
हमारे देश की गरीबी भी एक जंग से कम नहीं
चलिए इस से निजात पाने के लिए हाथ मिलाईये
कब तक भरोगे खुद का पेट
कुछ उनका पेट भी तो भरना चाहिए
कुछ तो रहम करो इन मासूम बच्चो पे
अपनी ज़िन्दगी जीने के लिए इन्हें शिकार ना बनाईये
माना गरीबो को देखते हो सब गन्दी नज़रो से
पर एक बार कभी अपना दामन भी झांक लेना चाहिए
-------------------------------------------------------------------- कुछ अंश मेरी कविता के --- (आलोक )
धर्म जाती के नाम पर असहाय न फैलाईये
हिन्दू कहते हम खतरे में
मुस्लिम कहते हम खतरे में
मै तो कहता हु हम सब खतरे में
इसलिए
पहले अपने देश को तो बचाईये
जिन बच्चो के खेलने खाने के दिन है
उनसे पत्थर तो ना उठ्वायिये
मैंने कब कहा जीना छोड़ दो यारो
पर उन गरीब माँ के बच्चो पर
थोडा सा तो रहम खाईये
रोटिया सेकने का शौक है तो रखो
पर अपनी रोटिया सेकने के लिए
उनका घर तो ना जलाईये
माना कि अधियारा बहुत है यंहा
पर अब तो सूरज निकलना चाहिए
क्या इन बच्चो पे अच्छे लगते है
ये कुदाल ये फावड़े
अब तो इनके हाथो में भी
कलम और दावात होनी चाहिए
इन फूल से बच्चो को कब तक नोचोगे
इन्हें भी थोडा खिलखिलाने देना चाहिए
इनमे से भी कोई हो सकता है
अपने देश का वजीर
इनको भी तो आजमाने का मौका देना चाहिए
कब तक करोगे एक दुसरे का कत्ले आम
कभी भाई -भाई का रिश्ता भी तो निभायिये
नहीं पोछ सकते उन बच्चो के माँ के आंशु
तो कम से कम उन्हें खून के आंशु ना रुलायिये
माना की हर एक जंग को जीतना नहीं आसा
पर कुछ ही जंग जितने के लिए हाथ तो बढाईये
हमारे देश की गरीबी भी एक जंग से कम नहीं
चलिए इस से निजात पाने के लिए हाथ मिलाईये
कब तक भरोगे खुद का पेट
कुछ उनका पेट भी तो भरना चाहिए
कुछ तो रहम करो इन मासूम बच्चो पे
अपनी ज़िन्दगी जीने के लिए इन्हें शिकार ना बनाईये
माना गरीबो को देखते हो सब गन्दी नज़रो से
पर एक बार कभी अपना दामन भी झांक लेना चाहिए
-------------------------------------------------------------------- कुछ अंश मेरी कविता के --- (आलोक )
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