सारी दुनिया से प्यारी सबसे न्यारी
एक माँ ही तो होती है
जीवन के भाग दौड़ में
पथरीली राहो पे थक हार के
जब मै घर वापस आता हु
माँ के आँचल में सो जाता हु
भूख प्यास मिट जाती है
जब उसके हाथो को मै
अपने सर पे पाता हु
घर से जब भी निकलू मै
माथे को चूमा करती है
कैसा ये निस्वार्थ प्रेम है
मै अब भी सोचा करता हु
नहीं समझ सकता मै माँ
तेरे अंतरमन कि गहराई को
घर में इस देवी को छोड़ के
ना जाने क्यों पत्थर पूजा जाता है
मेरे लिए तो स्वर्ग यही है
हरपल माँ के कदमो को चूमा जाता हु
___________________________ ( आलोक पाण्डेय )
एक माँ ही तो होती है
जीवन के भाग दौड़ में
पथरीली राहो पे थक हार के
जब मै घर वापस आता हु
माँ के आँचल में सो जाता हु
भूख प्यास मिट जाती है
जब उसके हाथो को मै
अपने सर पे पाता हु
घर से जब भी निकलू मै
माथे को चूमा करती है
कैसा ये निस्वार्थ प्रेम है
मै अब भी सोचा करता हु
नहीं समझ सकता मै माँ
तेरे अंतरमन कि गहराई को
घर में इस देवी को छोड़ के
ना जाने क्यों पत्थर पूजा जाता है
मेरे लिए तो स्वर्ग यही है
हरपल माँ के कदमो को चूमा जाता हु
___________________________ ( आलोक पाण्डेय )
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