Friday, May 23, 2014

लिखी एक ग़ज़ल

एक कोरे से कागज पे जो लिखा तेरा नाम
मानो जैसे तू सामने बैठी हुई मुस्करा रही है

रखा जो एक गुलाब किताबो में तेरे नाम का
ऐसा लगा की तू मेरे साथ गुनगुना रही है

लिखी एक ग़ज़ल जो तुझको याद करके मैंने
अब भी पन्नो से तेरी खुसबू की महक आ रही है

अब तू ही बता कैसे कहु साथ नहीं तू मेरे हमदम
रात  के ख्वाबो में मेरे तू ही तू नज़र आ रही है

ये हवा ये रस्क ये फूलो की महक कहती है कुछ
ऐसा लगता है तू धीरे -२ मेरे करीब आ रही है
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आलोक पाण्डेय ( २४/०५ /२०१४  )

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