Monday, December 17, 2012

यादो के किस्से खोलू तो

यादो के किस्से खोलू तो
एक शक्स बहुत याद आता है
मै गुजरे पल को सोचू तो
एक शक्स बहुत याद आता है
अब जाने कौन सी नगरी में
आबाद है मुददत से जा के
मै देर रात थक जाऊ तो
एक शक्स बहुत याद आता है
कुछ बाते थी फूलो जैसी
कुछ लहजे खुसबू जैसे थे 

मै शहरे चमन में टहलू तो
एक शक्स बहुत याद आता है
वो पल भर की नाराजगिया
और मान भी जाना पल भर में
अब खुद से भी रूठू तो
वो शख्स बड़ा याद आता है
है चेहरा चाँद से आँखों में
है उसके ही किस्से बातो में
जब तनहा चाँद को देखू तो
एक शख्स बहुत याद आता है
उसको हँसता देख मुस्कान में
बदल गए मेरे आंशु
जब बहते आंशु मेरे आँखों से
एक शख्स बहुत याद आता है
 



जिसने इस दौर के इंसान किये हो पैदा 
वो मेरा भी खुदा हो मुझे मंजूर नहीं

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