Thursday, April 11, 2013

एक यही सितम काफी है की साथ नहीं हो तुम

रात में जब मेरी आँखे थक के हार जाती है 
मेरी पलकें कुछ नम सी पड़ जाती है
न जाने उन्हें कैसे पता चल जाता है
मेरी हर एक आह का
उनकी आँखे मेरी आँखों से पहले बरस जाती है
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तुझे भी वक़्त की चौखट पे नींद आ ही गयी
पलट के तू भी ना आया मेरी ख़ुशी की तरहा
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मै चाहता हु कि तेरी हर एक बात में मिलु
ज़िन्दगी की तेरी हर धुप- छाव में मिलु 
कुछ चाहता हु इस कदर मिल जाऊ तुझे 
तू ढूढती फिरे मै तुझे तेरे प्यार के सौगात में मिलु 

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मुझे इतना याद आकर बेचैन ना किया करो...
एक यही सितम काफी है की साथ नहीं हो तुम
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उसके दिल में कुछ ना कुछ एहसास था ज़रूर 
वरना चुपके से मेरा हाथ दबा के गुजरता क्यों ?
_____________________________ ( आलोक )


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