Sunday, April 7, 2013

दिल का दरवाज़ा

कभी सुनसान रातो में अपनी यादो का दरवाज़ा खुला भूल जाता हु 
उस समय आँखे मेरी झरनों का रूप ले लेती है 
और ये दिल यादो की कांटो से लहूलुहान हो जाता है 
फिर न जाने कौन चुपके से आता है 
और मेरे दिल के चोटों पे मरहम लगा जाता है 
अक्सर मेरे दोस्त मुझसे पूछा करते है तू इतना उदास क्यों रहता है 
कैसे बताऊ उन्हें की कोई मुझे रात में
किसी से कुछ ना कहने की कसम दे जाता है 
फिर मै सब कुछ भुला के यादो को मिटा के 
जीवन के पथ पे आगे बढ जाना चाहता हु
पर फिर मुझे वो अपने यादो की सहारे छोड के
मुझे तनहा बेबस अकेला छोड़ जाता है
फिर हमने सोचा अब न खोलेंगे ये दिल का दरवाज़ा
फिर भी वो बदमासी से मेरे दिल पे दस्तक दे जाता है
सोचते है छोड़ देंगे उसका शहर ,उसकी गलिया
पर न जाने कौन मेरा पता उसे फिर से दे जाता है
मै जब भी चाहू उससे छुपना वो मेरे सामने आ जाता है
जब कभी तनहा अकेले रातो में बैठा रहता हु
वो मेरे आस पास जुगनू बन के चमक जाता है
मेरी यादो की दुनिया को फिर से रोशन कर जाता है
___________________________________ ( आलोक 

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