Friday, August 16, 2013

जो लोग कल तक हमसे मुह फेर लेते थे ना जाने अब हम पे मेहरबान क्यों है जिनका लहू खौल जाता था हमे देखके वही लोग हमे अब लहू देने के शौक़ीन क्यों है
पथ पे चलने से पहले जो बिछाते थे कांटे आज उन्हीने फूल बिछाये फिर क्यों है अगर मेरी खुशियों से उन्हें कोई वास्ता नहीं फिर वही लोग मेरे लिए पलके बिछाए क्यों है

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