आप का काम था मुस्कराना मुस्कराते रहे
आप आते रहे हम बुलाते रहे
आप दुनिया की भीड़ में गुम हो गए
हम आप के हाथो का कंगन घुमाते रहे
आप की आदत थी सदियों से सताने की हमे
हमको आदत थी मुस्कराने की मुस्कराते रहे
आप आओगे लौट के एक दिन
इस धोखे में हम भी पलके बिछाते रहे
ख्वाब मंजिल का कुछ पता ही ना था
सपनो में रोज तुम्हे हम सुलाते रहे
रूठने मानाने के इस खेल में
आप रूठे रहे हम मानते रहे
आप की खामोशिया बन गयी सदा के लिए
आलोक खुशियों आप के लिए सजाते रहे
दुःख ,दर्द ,तपन जो कुछ भी मिला आप से
सब हम अपने गले से लगाते रहे
_____________________ १ ६ /० ८ /२ ० १ ३ ( आलोक )
No comments:
Post a Comment