Sunday, September 29, 2013

मेरा बचपन

( मेरा बचपन ) मेरी कविता के कुछ अंश
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बचपन कुछ ऐसे बिता जैसे कुछ पल पहले मै बच्चा था
कुछ ऐसा लगता है अब की शहर से तो मेरा गाँव अच्छा था

भुला सकते भी है कैसे हम अपनी बचपन की  यादो को
बर्फ का गोला ,चूरन की पुडिया घर में मकड़ी के जाला ही अच्छा था

 जब सड़क पे  गिराता कोई बालू अपना  घर बनाने को
हम चोरी से उनसे छोटे-२  घरौदे बनाते वो ही अच्छा था

भर के हम जब  गुब्बारों में नालियों का गन्दा पानी
एक दुसरे पे उछाला करते थे वो ही अच्छा था

अब के हमारे  हीरो ,नेताओ ,घूसखोरो ,घुसपैठियों से तो
हमारा नागराज ,सुपर कमांडो ध्रुव ,तेनालीराम अच्छा था

रिश्वतो ,मैच फिक्सिंग के बिना अब मजा कहा खेल में
अपनी तो कांच की गोलिया वो गुल्ली -डंडा ही अच्छा था

अब दिन -रात पैसे कमा के बैंक  कितना भी भर लो
पर वो मुट्ठी में एक रुपये में लगता था संसार अपना था
______________________________________ ( आलोक पाण्डेय )











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