Tuesday, October 22, 2013

दौलत की ये दुनिया है

दोस्ती हम दोस्तों से खूब निभाते रहे
प्यार का चोट दिल पे खाते रहे
गिरा आँगन में एक दिन पत्थर मेरे
देखा तो वो दोस्तों के घर से आते रहे
भूखे बच्चो के पेट रात भर खाली रहे
दो रोटियों के लिए वो छटपटाते रहे
घर बनाया जो प्यार से अपनों के लिए
उस घर को अपने ही कुछ जलाते रहे
जिसपे करते थे हम खुद से ज्यादा याकि
राह में कांटे वही हरदम बिछाते रहे
ताउम्र साथ निभाने का वादा किया जिसने
आज जेब खाली है तो वो भी जाते रहे
 कैसे रिश्ते कैसे वादे किसका सच्चा प्यार यंहा
दौलत की ये दुनिया है जिश्मो का व्यापार यंहा ....  (आलोक पाण्डेय )

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