कदम लडखडाये और हम चलते रहे
माँ की छाया में हर रोज पलते रहे
हादसों के दौर में मिले कांटे बहुत
फूल उनको बना हम टहलते रहे
साथ चलती रही मेरी माँ की दुआ
काफिले मेरी उम्मीदों के बढ़ते रहे
मुश्किल आयी बहुत रास्ते में मेरे
माँ की दुवाओ से बच के निकलते रहे
__________________________ ( आलोक पाण्डेय )
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