Tuesday, October 22, 2013

कदम लडखडाये और हम चलते रहे

कदम लडखडाये और हम चलते रहे
माँ की छाया में हर रोज पलते रहे

हादसों के दौर में मिले कांटे बहुत
फूल उनको बना हम टहलते रहे

साथ चलती रही मेरी माँ की दुआ
काफिले मेरी उम्मीदों के बढ़ते रहे

मुश्किल आयी बहुत रास्ते में मेरे
माँ की दुवाओ से बच के निकलते रहे
__________________________ ( आलोक पाण्डेय )

No comments:

Post a Comment