दीपक एक जलाना तुम भी
मगर प्यार और विस्वास का
उम्मीद कि किरण बनो जिनके
सर पे किसी कि छाया ना हो
कोशिस यही करना बस तुम
किसी रोते चेहरे कि मुस्कान बनो
लग जाओ गले से
बिन माँ के रोते उन बच्चो से
जिन कि दीवाली
एक रोटी को तरस जाती है
कुछ पल बिताओ
उन बूढ़े माँ -बाप के साथ
जिनकी आँखे बरसो से
तुम्हे देखने को तरस जाती है
एक दिया प्रेम का वंहा जलाओ
जंहा रोशनी नहीं पहुच पाती है
तन ढकने के लिए उनके कुछ करो
जो भूखे नंगे सड़को पे सो जाते है
ना कोई रोये भूखा बच्चा
ना बेटी हो दहेज़ का शिकार
ना हो माँ -बाप के आँख में आंसू
कुछ ऐसा हो दिवाली का त्यौहार
चलो आओ हमसब मिल के
एक दीपक ऐसा जलाये
जिसकी रौशनी हर घर तक जाये
दीपक अमन शांति प्यार विस्वास का
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मंगलमय हो आप कि दीपावली ( आलोक पाण्डेय )
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