लिखने को तो बहुत कुछ था... पर नहीं लिखा... क्यूंकि वो हमेशा कहती थी तुम्हारी तो आँखे ही बोलती है... आज सोचता हू काश लिख ही देता तो "वो ख़त तो उसके साथ रहते..."
(¯`*•.¸❤ ♥►- alok .-◄♥ ❤¸.•*´¯)
‘आलोक ’ अपने आप से कब तक लड़ा करें
जो हो सके तो अपने भी हक़ में दुआ करें
दी है कसम उदास न रहने की तो बता
जब तू न हो तो ये हाल किससे बंया करे
Monday, December 23, 2013
बड़ी आरज़ू थी तू मिले
बड़ी आरज़ू थी तू मिले सफ़र के किसी हसी मोड़ पे
ये सोच के मै निकल लिया वीरान बस्ती छोड़कर
हादसो के सफ़र में शहर कि तरफ अकेला बढ़ता गया
थी उम्मीद तू मिल जायेगी अजनबी रास्तो कि भीड़ में
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