Monday, December 23, 2013

बड़ी आरज़ू थी तू मिले

बड़ी आरज़ू थी तू मिले सफ़र के किसी हसी मोड़ पे
ये सोच के मै निकल लिया वीरान बस्ती छोड़कर
हादसो के सफ़र में शहर कि तरफ अकेला बढ़ता गया
थी उम्मीद तू मिल जायेगी अजनबी रास्तो कि भीड़ में
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आलोक पाण्डेय

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