Thursday, March 13, 2014

हे पिता तुम्हारा अभिनन्दन है

थामी उंगलियो को और चलना सिखाया
थक गए पैर कभी तो गोद में उठाया
रोया जब भी मै किसी खिलौने कि चाह में
उन सारे खिलौनो को अपने पास पाया
मै अपने पिता को हमेशा अपने साथ पाया

महसूस किया उन्होंने मेरी हर एक ख़ुशी को
काँटों कि तरह इर्द -गिर्द रहके मुझ फूल को बचाया
रास्ते के हर सफ़र हर मोड़ पे सहारा दिया
सींचा मुझ पेड़ को और मुझको हरा भरा किया

मेरी बचपन कि शरारतो में खुद को पाते थे
कभी गुस्सा तो कभी मंद -मंद मुस्काते थे
मरी कि हर एक गलती पे हाथ उठाते थे
फिर उन्ही हाथो को मेरे सर पे घुमाते थे

माँ कि माथे कि चमक जीवन का आस्तित्व तुम्ही
कभी बने चट्टान के जैसे कभी प्यार कि मूरत
बनके कल्पवृक्ष जैसे पूरी कि मेरी हर ज़रूरत
नहीं चूका सकता सौ जन्मो तक अहसान पिता

स्मृतियों कि इस सुन्दर पावन धरती पर
हे पिता तुम्हारा अभिनन्दन है
शत -शत नमन करता हु तेरे चरणो में मै
मेरा ये जीवन तुझपे अर्पण है ..................................




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