Monday, March 31, 2014

आज हु खुश बहुत मै

ये ज़िन्दगी का कारवां कुछ युही चलता रहेगा
आने जाने का ये सिलसिला चलता रहेगा

रात कटती रहेगी हर नयी सुबह के इंतज़ार में
चेहरे पे सुख -दुःख का सिलसिला चलता रहेगा

सुख जाएँगी नदिया और जंहा के सारी दरिया
पर आँख से बहते पानी का सिलसिला चलता रहेगा

परिंदे दूर तलक कितना भी उड़ के जाये गगन में
जमी पे लौट के आने का सिलसिला चलता रहेगा

आज हु खुश बहुत मै मिल गयी मेरी मंज़िल मुझे
जाने कब तक ये खुशियो का सिलसिला चलता रहेगा
____________________________________ ( आलोक पाण्डेय )

Friday, March 14, 2014

तब वो प्यार कंहा था

कभी -कभी मै सोचता हु पहले मै क्या था
मेरा वज़ूद क्या था
जब मुझे प्यार कि बेहद ज़रूरत थी
तब वो प्यार कंहा था
दिन भर दीवारो से बाते करने लगे
रात भर सितारो संघ जागने लगा
जब तन्हाई में हम तड़प रहे थे
तब वो प्यार कंहा था
महफ़िल सजती रहती
मगर हम सुने थे
लोगो से मिलते थे फिर भी अधूरे थे
वादा तो कर दिया उन्होंने
निभाने कि बारी आयी
तब वो प्यार कंहा था
आज तनहा ही जीने में सुकून मिलने लगा है
क्यों कि इस में ना कोई फरेब
ना कोई दगा है
अब वो हमे प्यार जताने फिर चले आये है
हमने अब भी वही कहा
जब हम मर रहे थे
तब वो प्यार कंहा था। ....... … ……

Thursday, March 13, 2014

हे पिता तुम्हारा अभिनन्दन है

थामी उंगलियो को और चलना सिखाया
थक गए पैर कभी तो गोद में उठाया
रोया जब भी मै किसी खिलौने कि चाह में
उन सारे खिलौनो को अपने पास पाया
मै अपने पिता को हमेशा अपने साथ पाया

महसूस किया उन्होंने मेरी हर एक ख़ुशी को
काँटों कि तरह इर्द -गिर्द रहके मुझ फूल को बचाया
रास्ते के हर सफ़र हर मोड़ पे सहारा दिया
सींचा मुझ पेड़ को और मुझको हरा भरा किया

मेरी बचपन कि शरारतो में खुद को पाते थे
कभी गुस्सा तो कभी मंद -मंद मुस्काते थे
मरी कि हर एक गलती पे हाथ उठाते थे
फिर उन्ही हाथो को मेरे सर पे घुमाते थे

माँ कि माथे कि चमक जीवन का आस्तित्व तुम्ही
कभी बने चट्टान के जैसे कभी प्यार कि मूरत
बनके कल्पवृक्ष जैसे पूरी कि मेरी हर ज़रूरत
नहीं चूका सकता सौ जन्मो तक अहसान पिता

स्मृतियों कि इस सुन्दर पावन धरती पर
हे पिता तुम्हारा अभिनन्दन है
शत -शत नमन करता हु तेरे चरणो में मै
मेरा ये जीवन तुझपे अर्पण है ..................................