Monday, April 14, 2014

बचपन

हा नहीं भुला हु बचपन के वो प्यारे से दिन
वो लड़ना झगड़ना एक दूसरे का रूठना मनाना
वो किताबो के अंदर छुपा के मोर पंख ले जाना
कभी हसते -२ जाना कभी रोते -२ स्कूल जाना
घर लौटने के बाद वही बालू -मिट्टी के घर बनाना
हां नहीं भुला हु दोस्तों के साथ वो टिफ़िन का खाना
बहुत याद आती है वो बर्फ के गोले ,चूरन की पुड़िया
वो स्याही से रँगे हुए कपडे और वो दोस्तों का साथ
कभी पेट दर्द का बहाना कभी होमवर्क पूरा ना हो पाना
स्कुल ना जाने के कितने सारे बहाने बनाना
पर सब बहाने पापा के सामने आते हो जाते फ्लॉप
क्या दिन थे वो माँ का अपने हाथो से खाना खिलाना
पापा के गुस्से पे माँ के आँचल में जाके सो जाना
वो दोस्तों संघ कांच की गोलिया वो गुल्ली वो डंडे
और छोटे से गुलक में अपने पैसे बचाना
वो छुट्टी की घंटी फिर कमरे से दौड़ के वो  बाहर आना
लगता बरसो बाद मिले ऐसे दोस्तों से गले लग जाना
की कास वो बचपन के दोस्त वैसे ही अब मिल पाते
बचपन के वो सारी खुशियो के फूल फिर खिल जाते
__________________________________

आलोक पाण्डेय

No comments:

Post a Comment