अक्सर खो सा जाता हु तेरी सुरमयी आँखों में
तेरे ही सपने देखा करता हु अक्सर इन रातो में
है दूर भला क्यों तू मुझसे कब आओगी आँगन मेरे
कब गूंजेगा मेरा आंगन तेरे पायल कि झनकारो से
जो पसंद है रंग तुम्हे उन रंगो से घर को रंगवाया है
जो पसंद है फूल तुम्हे वो सब बागीचे में लगवाया है
जितनी चाह मुझे है तुमसे ज़ल्दी से मिल जाने कि
बैठा -बैठा सोच रहा हु तू भी उतनी ही व्याकुल होगी
है दूरियों के कुछ दिन और फिर मै तेरा तू मेरी होगी
होगा हाथो में हाथ हमारा ना कोई ख्वाहिस अधूरी होगी
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आलोक पाण्डेय facebook.com/alok1984
तेरे ही सपने देखा करता हु अक्सर इन रातो में
है दूर भला क्यों तू मुझसे कब आओगी आँगन मेरे
कब गूंजेगा मेरा आंगन तेरे पायल कि झनकारो से
जो पसंद है रंग तुम्हे उन रंगो से घर को रंगवाया है
जो पसंद है फूल तुम्हे वो सब बागीचे में लगवाया है
जितनी चाह मुझे है तुमसे ज़ल्दी से मिल जाने कि
बैठा -बैठा सोच रहा हु तू भी उतनी ही व्याकुल होगी
है दूरियों के कुछ दिन और फिर मै तेरा तू मेरी होगी
होगा हाथो में हाथ हमारा ना कोई ख्वाहिस अधूरी होगी
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