Saturday, April 5, 2014

अक्सर खो सा जाता हु

 अक्सर खो सा जाता हु तेरी सुरमयी आँखों में
 तेरे ही सपने देखा करता हु अक्सर इन रातो में

 है दूर भला क्यों तू मुझसे कब आओगी आँगन मेरे
 कब गूंजेगा मेरा आंगन तेरे पायल कि झनकारो से

 जो पसंद है रंग तुम्हे उन रंगो से घर को रंगवाया है
 जो पसंद है फूल तुम्हे वो सब बागीचे में लगवाया है

जितनी चाह मुझे है तुमसे ज़ल्दी से मिल जाने कि
 बैठा -बैठा सोच रहा हु तू भी उतनी ही व्याकुल होगी

 है दूरियों के कुछ दिन और फिर मै तेरा तू मेरी होगी
 होगा हाथो में हाथ हमारा ना कोई ख्वाहिस अधूरी होगी
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आलोक पाण्डेय   facebook.com/alok1984

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