Tuesday, April 22, 2014

एक तेरे आने से


लो मै तेरा हुआ बन जा अब तू भी मेरी
साथ नग्मे कुछ गुनगुनाये ज़रा
हाथ में हाथ तेरा हो फिर मुक़्क़मल हु मै
बिन तेरे मै अब एक पल ना रह पाउँगा
हुई कोई खता तो हो जाना खफा
पर ऐसा नहीं की मर ही जाऊ मै
सितारों से भरी इस चाँदनी रात में
मै हु अकेला बस है एक चाँद की कमी
एक तेरे आने से रौशन हो जायेगा सब
पूरी हो जाएगी मेरी चाहतो की सारी कमी
_____________________________
आलोक पाण्डेय 

Saturday, April 19, 2014

तेरी इस उदासी से

तेरी इस उदासी से किसी का दिल टूट जाता है
तेरे ना मुस्कराने से वो खुद से भी रूठ जाता है
अगर हुई है कोई खता तो दे ज़ी भर के सजा
पर तेरे एक बात ना करने से कोई टूट जाता है
____________________________
आलोक पाण्डेय 

Thursday, April 17, 2014

ये इतने दिनों की दूरी

बड़े इंतज़ार के बाद अब वो आलम आया
उनके आने का कोई तो पैगाम आया

बहुत दिनों से एक खलिश थी सीने में
चलो अच्छा हुआ दर्द का इलाज़ तो आया

कब से बैठा था मै एक तेरे  इंतज़ार में
कम से कम वो इंतज़ार काम तो आया

इतने दिनों से ये दिल बेचैन था तेरे लिए
तेरे आने से इस दिल को आराम तो आया

ये इतने दिनों की दूरी का आलम ना पूछिये
जो शख्स मेरा था वक़्त पे लौट तो आया
______________________________
आलोक पाण्डेय 

Monday, April 14, 2014

बचपन

हा नहीं भुला हु बचपन के वो प्यारे से दिन
वो लड़ना झगड़ना एक दूसरे का रूठना मनाना
वो किताबो के अंदर छुपा के मोर पंख ले जाना
कभी हसते -२ जाना कभी रोते -२ स्कूल जाना
घर लौटने के बाद वही बालू -मिट्टी के घर बनाना
हां नहीं भुला हु दोस्तों के साथ वो टिफ़िन का खाना
बहुत याद आती है वो बर्फ के गोले ,चूरन की पुड़िया
वो स्याही से रँगे हुए कपडे और वो दोस्तों का साथ
कभी पेट दर्द का बहाना कभी होमवर्क पूरा ना हो पाना
स्कुल ना जाने के कितने सारे बहाने बनाना
पर सब बहाने पापा के सामने आते हो जाते फ्लॉप
क्या दिन थे वो माँ का अपने हाथो से खाना खिलाना
पापा के गुस्से पे माँ के आँचल में जाके सो जाना
वो दोस्तों संघ कांच की गोलिया वो गुल्ली वो डंडे
और छोटे से गुलक में अपने पैसे बचाना
वो छुट्टी की घंटी फिर कमरे से दौड़ के वो  बाहर आना
लगता बरसो बाद मिले ऐसे दोस्तों से गले लग जाना
की कास वो बचपन के दोस्त वैसे ही अब मिल पाते
बचपन के वो सारी खुशियो के फूल फिर खिल जाते
__________________________________

आलोक पाण्डेय

Saturday, April 5, 2014

अक्सर खो सा जाता हु

 अक्सर खो सा जाता हु तेरी सुरमयी आँखों में
 तेरे ही सपने देखा करता हु अक्सर इन रातो में

 है दूर भला क्यों तू मुझसे कब आओगी आँगन मेरे
 कब गूंजेगा मेरा आंगन तेरे पायल कि झनकारो से

 जो पसंद है रंग तुम्हे उन रंगो से घर को रंगवाया है
 जो पसंद है फूल तुम्हे वो सब बागीचे में लगवाया है

जितनी चाह मुझे है तुमसे ज़ल्दी से मिल जाने कि
 बैठा -बैठा सोच रहा हु तू भी उतनी ही व्याकुल होगी

 है दूरियों के कुछ दिन और फिर मै तेरा तू मेरी होगी
 होगा हाथो में हाथ हमारा ना कोई ख्वाहिस अधूरी होगी
______________________________________
आलोक पाण्डेय   facebook.com/alok1984

Friday, April 4, 2014

ये खुदा कुछ पल और नसीब में दे दे

हा सजा रखे है बहुत से ख्वाब पलकों पे
कुछ पुरे हो गए तो कुछ अभी बाकि है
कुछ और दिन जीने कि चाहत है बस
उन सपनो के लिए जो मैंने अपनों के लिए देखे है
वो मेरे सारे सपने जो सिर्फ मेरे अपने है
जो प्यार मुझे मेरे पिता से मिला
जो ममता मेरी माँ ने मुझे दी
वो भाई जो हर पल मेरे साथ रहा
वो बहन कि मेरी कलाई पे राखी का प्यार
वो बचपन के दोस्त जो अब भी मेरे साथ है
उन सब को कुछ देना चाहता हु
कुछ सपनो को सच करके
क्यों कि उनलोगो ने अपने सपने तोड़ के
मेरे सपनो को हकीकत में बदला
अब मै उन्हें उनके सपने जो अधूरे है
लौटाना चाहता हु
ये खुदा कुछ पल और नसीब में दे दे
मुझे कुछ अपनों के सपने पूरा करने के लिए
_____________________________  ( आलोक पाण्डेय )

ख्वाब थी तुम

ना ही भुला हु ना ही भूलूंगा तुझे ए हसरत मेरी
 ख्वाब थी तुम भला ख्वाबो पे हक़ जताउ कैसे

कुछ पल के लिए साथ थी तुम खुश था मेरा जंहा
पर अब तेरे चले जाने का जिक्र सबसे बताऊ कैसे

बड़ी उम्मीदो से थामा था ख़ुशी से एक दिन तेरा दामन
अब वो दामन ही  छूट गया तो बता मुस्कराउ कैसे

हाथो में मेरे तेरा हाथ था सफ़र कितना सुहाना लगा
अब तू नहीं साथ तो अकेले उन रास्तो पे जाऊ कैसे
________________________________  ( आलोक पाण्डेय  )