Wednesday, October 30, 2013

हा थी मेरी आँखे नम तेरे जाने के बाद

हा थी मेरी आँखे नम तेरे जाने के बाद
मै खुश रहता था तेरे मुस्कराने के बाद

मिट जाते थे गम ,मिट जाती थी थकान
एक तेरे बस गले से लग जाने के बाद

आँखे सजाती है अब भी ख्वाब बस तेरे
यकी  है तू लौट आएगा थक जाने के बाद

मुझको यकी है तू एक दिन तू लौट आएगी
पर वक़्त कहता है कि मेरे चले जाने के बाद

_______________________________ ( आलोक पाण्डेय )

ज़िन्दगी ने मुझको क्या


ज़िन्दगी ने मुझको क्या हसना सिखा दिया
कुछ अपनों ने ही मुझपे पत्थर उठा लिया

सोचा के निकला था घर आ जाउंगा रात तक
आते समय कुछ दोस्तों ने कांटा बिछा दिया

मिल जाये सुखी धरती को थोड़ी सी नमी
मैंने अपने पांव के छालो में कांटा चुभा लिया

अब ज़िन्दगी उलझ गयी है पैसो के खेल में
 ना मिली दवा तो माँ ने बच्चा गवा दिया

अपनों को ही लुटते रहे कुछ अपने ही रहनुमा
अपने घर कि रौशनी के लिए मेरा घर जला दिया

 कुछ नहीं बचा तो मै चला अपनी ज़िन्दगी के पास
 उस ज़िन्दगी ने भी मेरे खाने में जहर मिला दिया
_________________________________ ( आलोक पाण्डेय )



Saturday, October 26, 2013

बात बिगड़ी थी अगर सुलझ सकती थी जो तुम चाहते

चाह के भी हम दोनों एक दुसरे के करीब ना आ सके
मंजिल थी बहुत करीब फिर भी उसे ना हम पा सके

दिल के जितने करीब थे फासले उतने ही बढ़ते गए
ना तुम हमे समझ सके ना हम तुम्हे समझा सके

हमारे रिश्तो की डोर के सारे धागे उलझ के रह गए
शायद मुझमे थी कमी या तुम किसी के करीब आ गए

बात बिगड़ी थी अगर सुलझ सकती थी जो तुम चाहते
तुमने भी हाथ रोक लिया हाथ हम भी ना बड़ा सके

नहीं मालूम क्यों मिटाने चले थे मेरे ज़िन्दगी के रास्ते
बड़े खुदगर्ज़ आये यंहा पर नाम तक मेरा न मिटा सके
____________________________________ ( आलोक पाण्डेय  )
 



Thursday, October 24, 2013

बोलो तुम कब आओगी

मेरा आँगन तरस रहा तेरी पायल की नाज उठाने को
बोलो तुम कब आओगी इस जीवन को महकाने  को
नीद जरा सी आती है आँखे बस तेरे ख्वाब सजाती है
मेरे सुनी बगिया की माली बोलो ना तुम कब आओगी
और बताओ कब तक मेरी रातो की नीद चुराओगी 
बोलो ना तुम कब आओगी
__________________________________ ( आलोक पाण्डेय )


ना कोई शिकवे गिले होंगे

ना कल तुम होगे ना हम होंगे
ना कोई शिकवे गिले होंगे
वक़्त आएगा ना लौट के वापस
ना जाने हम सब कब कंहा होगे
याद आयेंगे जब बीते हुए पल
यादो के बस काफिले होंगे
____________________  आलोक पाण्डेय
naa kal tum hoge naa hum hoge
naa koi shikve gile honge
waqt aayega naa laut ke waps
naa jane hum sab kanha honge
yaad aayenge jab bite hue pal
yaado ke bas kafile honge 

Wednesday, October 23, 2013

जाने तुम कब आओगी

मेरा आंगन तरस रहा तेरी पायल का नाज़ उठाने को
 जाने तुम कब आओगी मेरे जीवन को महकाने को
 फूलो की प्यारी बगिया की माली तुम कब आओगी
 बाहों का सेज बनाके तुम मुझे कब सूलाओगी
aangan mera tars raha teri payal ka naaz uthane ko
jane tum kab aaogi jevan ki bagiya ko mahakne ko
phulo ki pyari bagiya ki mali tum kab aaogi
banho ka sej banake tum uspe kab sulaogi
_________________________________________ alok pandey

Tuesday, October 22, 2013

बता एक तेरे लिए ही हम बदल जाये कैसे

मेरे चेहरे पे जो लिखा है वो हम छुपाये कैसे
 बता एक तेरे लिए ही हम बदल जाये कैसे
 ज़िन्दगी के सफ़र में जिन्होंने सहारा दिया
 अब तू ही बता "आलोक " उन्हें भूल जाये कैसे
 कितनी तलवारे आये मेरे गर्दन के सामने
 सर झुकाना नहीं आता तो झुकाये कैसे
 ये इश्क तुझसे मोह्हबत करता तो हु मगर
  बस एक तेरे लिए अपनों को रुलाये कैसे
_______________________________ ( आलोक पाण्डेय )

कदम लडखडाये और हम चलते रहे

कदम लडखडाये और हम चलते रहे
माँ की छाया में हर रोज पलते रहे

हादसों के दौर में मिले कांटे बहुत
फूल उनको बना हम टहलते रहे

साथ चलती रही मेरी माँ की दुआ
काफिले मेरी उम्मीदों के बढ़ते रहे

मुश्किल आयी बहुत रास्ते में मेरे
माँ की दुवाओ से बच के निकलते रहे
__________________________ ( आलोक पाण्डेय )

दौलत की ये दुनिया है

दोस्ती हम दोस्तों से खूब निभाते रहे
प्यार का चोट दिल पे खाते रहे
गिरा आँगन में एक दिन पत्थर मेरे
देखा तो वो दोस्तों के घर से आते रहे
भूखे बच्चो के पेट रात भर खाली रहे
दो रोटियों के लिए वो छटपटाते रहे
घर बनाया जो प्यार से अपनों के लिए
उस घर को अपने ही कुछ जलाते रहे
जिसपे करते थे हम खुद से ज्यादा याकि
राह में कांटे वही हरदम बिछाते रहे
ताउम्र साथ निभाने का वादा किया जिसने
आज जेब खाली है तो वो भी जाते रहे
 कैसे रिश्ते कैसे वादे किसका सच्चा प्यार यंहा
दौलत की ये दुनिया है जिश्मो का व्यापार यंहा ....  (आलोक पाण्डेय )

Tuesday, October 1, 2013

तेरी यादे

ये ज़िन्दगी है कुछ अनकही सी
कभी खुशियों के सागर में डुबो देती है
कभी दुःख के सागर में छोड़ देती है
कुछ भरी कुछ खाली सी है ये ज़िन्दगी
जब भी निकालो जबाब ढूडने
थमा देती है सवालो की किताब
कुछ तुम सी है ये ज़िन्दगी
ना साथ देने का वादा करती है
ना साथ छोड़ जाने का
कितनी दूर तक चले हम साथ सफ़र में
पर कोई किनारा ना मिला
कुछ अनछुये से पहलु जब याद आते है
दिल घबरा सा जाता है ,आँखे नम हो जाती है
वो तेरा मेरा संघ हाथ पकड के चलना
वो तेरी सुबह की पहली मुस्कान
वो प्यारी -प्यारी बाते तेरी
सच आज भी लगता है की तू मेरे साथ है
यादो के भवर से निकल पाना मुमकिन नहीं
ज़िन्दगी कबतलक ना जाने रुलाएगी
अब तू नहीं पास ना ही तेरे आने की कोई आस
पर ये ज़िन्दगी तुझसे हमेशा शिकायत रहेगी
क्यों जो दिल के सबसे करीब होता है
 उस से ही तुम जुदा कर देती हो
सोचता हु की तुम्हे अपने जहन में ना लाऊ
कभी कोई तेरा जिक्र ना उठाऊ
पर कम्बक्त तेरी यादे
मुझे अकेला रहने ही कब देती है
_________________________ ( आलोक )