Saturday, April 20, 2013

चल कंही दूर ले चल मुझे

ऐ ज़िन्दगी 
अब तू ही बता ,अब कैसे जिया जाय 
चल कंही दूर ले चल मुझे 
जंहा ना कोई अपना हो 
ना पराया 
जंहा ना धूप हो ना उस की परछाई 
अब तो मुझे अपनों से डर लगने लगा है
सपने देखना तो कब का छोड़ दिया
चल कंही दूर ले चल मुझे
मेरी आरजू यही है कंही गुमनाम हो जाऊ
ना जहन में ना किसी के जिक्र में आऊ
ले चल मुझे कंही
जंहा खामोसी से धरती की चादर ओढ़ के सो जाऊ
कहने को तो सब अपने है
पर हमदर्द हमारा कोई नहीं
ऐसी दुनिया में क्या रहना
जंहा जीने का हमे कोई हक़ नहीं
ये ज़िन्दगी
चल ले चल अब मुझे दूर कंही
_____________________________ ( आलोक )


जो अपना खुद का बोझ नहीं उठा पाते

जो अपना खुद का बोझ नहीं उठा पाते
पेट की भूख ने उनसे पत्थर उठवा लिए.

तेरे बिन भी जीवन कटेगा ,क्यों ये लगता नहीं है कभी

या ख़्वाब में मेरे चेहरे पर तेरी जुल्फों को झुकते देखा था ? 
तेरे बिन भी जीवन कटेगा ,क्यों ये लगता नहीं है कभी ?

मत छिनो मेरा बचपन

मत छिनो मेरा बचपन -कुछ अंश मेरी कविता के
_________________
लड़ना हो तो लड़ो जंग ,पर गरीबी के लिए
धर्म जाती के नाम पर असहाय न फैलाईये
हिन्दू कहते हम खतरे में
मुस्लिम कहते हम खतरे में
मै तो कहता हु हम सब खतरे में
इसलिए
पहले अपने देश को तो बचाईये

जिन बच्चो के खेलने खाने के दिन है
उनसे पत्थर तो ना उठ्वायिये
मैंने कब कहा जीना छोड़ दो यारो
पर उन गरीब माँ के बच्चो पर
थोडा सा तो रहम खाईये
रोटिया सेकने का शौक है तो रखो
पर अपनी रोटिया सेकने के लिए
उनका घर तो ना जलाईये
माना कि अधियारा बहुत है यंहा
पर अब तो सूरज निकलना चाहिए
क्या इन बच्चो पे अच्छे लगते है
ये कुदाल ये फावड़े
अब तो इनके हाथो में भी
कलम और दावात होनी चाहिए

इन फूल से बच्चो को कब तक नोचोगे
इन्हें भी थोडा खिलखिलाने देना चाहिए
इनमे से भी कोई हो सकता है
अपने देश का वजीर
इनको भी तो आजमाने का मौका देना चाहिए
कब तक करोगे एक दुसरे का कत्ले आम
कभी भाई -भाई का रिश्ता भी तो निभायिये
नहीं पोछ सकते उन बच्चो के माँ के आंशु
तो कम से कम उन्हें खून के आंशु ना रुलायिये
माना की हर एक जंग को जीतना नहीं आसा
पर कुछ ही जंग जितने के लिए हाथ तो बढाईये

हमारे देश की गरीबी भी एक जंग से कम नहीं
चलिए इस से निजात पाने के लिए हाथ मिलाईये
कब तक भरोगे खुद का पेट
कुछ उनका पेट भी तो भरना चाहिए
कुछ तो रहम करो इन मासूम बच्चो पे
अपनी ज़िन्दगी जीने के लिए इन्हें शिकार ना बनाईये

माना गरीबो को देखते हो सब गन्दी नज़रो से
पर एक बार कभी अपना दामन भी झांक लेना चाहिए
------------------------------------------------------------------- --- (आलोक )


कोई और न देखे तुम्हे मोह्हबत से,

कोई और न देखे तुम्हे मोह्हबत से, मेरे सिवा,
ज़रा तुम अपनी जुल्फों को अपनी बांधते जाओ,


तुम भी साथ हो अबके बहार में

ये तितलियों के रक्स ये महकी हुई हवा
लगता है तुम भी साथ हो अबके बहार में

देखो धुआ उठ रहा है

देखो धुआ उठ रहा है कुछ दूर पे क्या हुआ होगा ?
शायद किसी गरीब का घर
या किसी बच्चे का बचपन
या खुद इन्सान ही जला होगा

देखो ज़रा तुम चुपके से आना


तुम्हारे आने की खुसबू कैसे फ़ैल गयी है
देखो ज़रा तुम चुपके से आना
आज सारे बादल लग रहा यंही बरसेंगे
हवाओ का रुख भी कुछ इस तरह ही है
बिजली जो दिन में चार बार जाती थी
आज देखो ज़रा जाने का नाम नहीं ले रही
मारे ख़ुशी के तुम्हारा कमरा मर गया है
टेलीविज़न की ख़ुशी तो समझ ही नहीं'आ रही
जैसे तुम मेरी नहीं उस की ही सब कुछ हो
रिमोट के गाल तो देखो कैसे लाल हो गए है
देखो इन किताबो को ज़रा कैसे मचल रही है
तुम्हारे नाम के पन्नो को हवा चूम -२ जा रही है
अब इस घर की हालत ना पूछ बैठना
बता नहीं पाऊंगा
तुम्हारे आने के ख़ुशी में कैसे बत्तीसी दिखा रहे है
इस बिस्तर के होठो को तो देखो
कैसे सुर्ख लाल हो गए आज ,कलतक तो पीले पड़े थे ये
तकिये का मुह तो एक मिनट के लिए बंद ही नहीं होता
दरवाजे जो कल तक आपस में लड़ा करते थे
आज इनको देखो कैसे पलकें बिछाये बैठे है
जैसे इनका ही महबूब आ रहा हो
दीवारे जो कल तक उदास सी बेरंग बैठी थी
आज कैसे उनपे शाखे निकल आई
ओह . अब तो इन पे फूल भी खिलने लगे है
लगता है बहुत करीब आ गयी हो घर के
तुमने मुझ से झूठ कहा था ना
मेरे अलावा तुमने किसी को भी नहीं बताया
की तुम आ रही हो
और तुमने इतनी बड़ी बात क्यों छुपायी
मेरे अलावा कोई तुम्हारा महबूब नहीं
अब ज़ल्दी से आ भी जाओ
नहीं तो ये बर्तन मुझे जीने नहीं देंगे
तुम्हारे आने के बाद मै उस वक़्त का टुकड़ा
सहेज के अपने दिल में छुपा लूँगा
____________________________
चलो बाकि बाते हम तुम्हारे आने के बाद बताएँगे :)
(कुछ टूटे फूटे हिस्से मेरी कहानी के जिनके ये कुछ अंश है )
_______________________ ( आलोक )
 

उठा के खा गया रोटी जमीन से

मना किया बहुत उसे पर उठा के खा गया रोटी जमीन से
क्या करे वो भी शाहब वो रोटी दिन भर की मजदूरी जो थी उसकी


जब बेटी ही जल गयी

कहना चाहती थी सारे दर्द माँ से एक कागज के टुकडे पे लिख के
पर जब बेटी ही जल गयी फिर अधूरे कागज के टुकडे क्या करते :(

मुझे आंसू तुम्हारे कभी अच्छे नहीं लगते

मुझे आंसू तुम्हारे कभी अच्छे नहीं लगते
जब भी तुम मुस्कुराओ तो खबर करना

यु तो हर बात पे हमसे करते हो शरारत

यु तो हर बात पे हमसे करते हो शरारत 
हम जो एक बार रूठे तो नादानी हो गयी 
_________________________ आलोक

जिस दिन प्यार हो जाये

अभी रख लो ये कागज का टुकड़ा हिफाज़त से 
जिस दिन प्यार हो जाये एक पैगाम लिख देना ...आलोक

Monday, April 15, 2013

लड़ना हो तो लड़ो जंग ,पर गरीबी के लिए
धर्म जाती के नाम पर असहाय न फैलाईये
हिन्दू कहते हम खतरे में
मुस्लिम कहते हम खतरे में
मै तो कहता हु हम सब खतरे में
इसलिए
पहले अपने देश को तो बचाईये

जिन बच्चो के खेलने खाने के दिन है
उनसे पत्थर तो ना उठ्वायिये
मैंने कब कहा जीना छोड़ दो यारो
पर उन गरीब माँ के बच्चो पर
थोडा सा तो रहम खाईये
रोटिया सेकने का शौक है तो रखो
पर अपनी रोटिया सेकने  के लिए
उनका घर तो ना जलाईये
माना  कि  अधियारा बहुत है यंहा
पर अब तो सूरज निकलना चाहिए
क्या इन बच्चो पे अच्छे लगते है
ये कुदाल ये फावड़े
अब तो इनके हाथो में भी
कलम और दावात होनी चाहिए

इन फूल से बच्चो को कब तक नोचोगे
इन्हें भी थोडा खिलखिलाने देना चाहिए
इनमे से भी कोई हो सकता है
अपने देश का वजीर
इनको भी तो आजमाने का मौका देना चाहिए
कब तक करोगे एक दुसरे का कत्ले आम
कभी भाई -भाई का रिश्ता भी तो निभायिये
नहीं पोछ सकते उन बच्चो के माँ के आंशु
तो कम से कम उन्हें खून के आंशु ना रुलायिये
माना की हर एक जंग को जीतना नहीं आसा
पर कुछ ही जंग जितने के लिए हाथ तो बढाईये

हमारे देश की गरीबी भी एक जंग से कम नहीं
चलिए इस से निजात पाने के लिए हाथ मिलाईये
कब तक भरोगे खुद का  पेट
कुछ उनका पेट भी तो भरना चाहिए
कुछ तो रहम करो इन मासूम बच्चो पे
अपनी ज़िन्दगी जीने के लिए इन्हें शिकार ना बनाईये

माना गरीबो को देखते हो सब गन्दी नज़रो से
पर एक बार कभी अपना दामन भी झांक लेना चाहिए
--------------------------------------------------------------------  कुछ अंश मेरी कविता के --- (आलोक  )











Thursday, April 11, 2013

ऐ ज़िन्दगी कभी मेरे घर भी आना



ऐ ज़िन्दगी
कभी मेरे घर भी आना
बिलकुल सीधा रास्ता है
कंही भटक ना जाना

घर पे दरवाज़ा नहीं
ना ही घर पे कोई छत होगी
खुला -२ सा आँगन होगा
ना कोई दीवार
कुछ ऐसा दिख जाये तो
समझना यही है
'आलोक ' का संसार

मेरे घर के बाहर प्यार लिखा है
तेरे आने का इंतजार लिखा है

ना मिले पता तो हवाओ से पूछ लेना
जो मिल जाये सुनसान राह
उस राह पे चली आना
पर ये ज़िन्दगी
कभी मेरे घर भी आना

घर में एक सहजादा मिलेगा
जिसे ज़िन्दगी की तलाश है
बड़ा मायूस सा ,उदास सा
मिलना उस से
उसे तुम्हारी तलाश है

ऐ ज़िन्दगी आना ज़रूर बिन तेरे ये घर
और मेरा जीवन बहुत उदास है
_______________________________ ( आलोक )

एक यही सितम काफी है की साथ नहीं हो तुम

रात में जब मेरी आँखे थक के हार जाती है 
मेरी पलकें कुछ नम सी पड़ जाती है
न जाने उन्हें कैसे पता चल जाता है
मेरी हर एक आह का
उनकी आँखे मेरी आँखों से पहले बरस जाती है
__________________________________ 

तुझे भी वक़्त की चौखट पे नींद आ ही गयी
पलट के तू भी ना आया मेरी ख़ुशी की तरहा
_______________________.

मै चाहता हु कि तेरी हर एक बात में मिलु
ज़िन्दगी की तेरी हर धुप- छाव में मिलु 
कुछ चाहता हु इस कदर मिल जाऊ तुझे 
तू ढूढती फिरे मै तुझे तेरे प्यार के सौगात में मिलु 

__________________________________ 

मुझे इतना याद आकर बेचैन ना किया करो...
एक यही सितम काफी है की साथ नहीं हो तुम
____________________________

उसके दिल में कुछ ना कुछ एहसास था ज़रूर 
वरना चुपके से मेरा हाथ दबा के गुजरता क्यों ?
_____________________________ ( आलोक )


Sunday, April 7, 2013

दिल का दरवाज़ा

कभी सुनसान रातो में अपनी यादो का दरवाज़ा खुला भूल जाता हु 
उस समय आँखे मेरी झरनों का रूप ले लेती है 
और ये दिल यादो की कांटो से लहूलुहान हो जाता है 
फिर न जाने कौन चुपके से आता है 
और मेरे दिल के चोटों पे मरहम लगा जाता है 
अक्सर मेरे दोस्त मुझसे पूछा करते है तू इतना उदास क्यों रहता है 
कैसे बताऊ उन्हें की कोई मुझे रात में
किसी से कुछ ना कहने की कसम दे जाता है 
फिर मै सब कुछ भुला के यादो को मिटा के 
जीवन के पथ पे आगे बढ जाना चाहता हु
पर फिर मुझे वो अपने यादो की सहारे छोड के
मुझे तनहा बेबस अकेला छोड़ जाता है
फिर हमने सोचा अब न खोलेंगे ये दिल का दरवाज़ा
फिर भी वो बदमासी से मेरे दिल पे दस्तक दे जाता है
सोचते है छोड़ देंगे उसका शहर ,उसकी गलिया
पर न जाने कौन मेरा पता उसे फिर से दे जाता है
मै जब भी चाहू उससे छुपना वो मेरे सामने आ जाता है
जब कभी तनहा अकेले रातो में बैठा रहता हु
वो मेरे आस पास जुगनू बन के चमक जाता है
मेरी यादो की दुनिया को फिर से रोशन कर जाता है
___________________________________ ( आलोक 

Friday, April 5, 2013

बस एक साथ तुम्हारा पाने को

मै छोड़ के सारे अपनों को 
तोड़ के सारे सपनो को 
दिल अपना ले की आई थी 
बस साथ तुम्हारा पाने को 

सबने रोक सबने टोका
ना कुछ सोचा ना कुछ समझा
सब पीछे भूल की आई थी
बस एक साथ तुम्हारा पाने को

वो भाई बहन का प्यारा रिश्ता
माँ की ममता का दुलारा रिश्ता
सब कुछ छोड़ के आई थी
बस एक साथ तुम्हारा पाने को

मै भी सबके आँखों का तारा थी
हसती और खिलखिलाती थी
अपना बचपन पीछे छोड़ आई थी
बस एक साथ तुम्हारा पाने को

अब तुम छोड़ ना देना साथ मेरा
बस हाथो में हो हाथ तेरा
जी लुंगी हर हाल में मै
एक साथ तुम्हारा पाने को

अब सब कुछ मेरा तेरा है
हर सुख दुःख तेरा अब मेरा है
अब नहीं चाहिए इस जीवन में कुछ
बस एक साथ तुम्हारा पाने को

मर भी जो मै जाउंगी तो
वापस एक दिन लौट के आउंगी
हर जनम में वापस आउंगी
बस एक साथ तुम्हारा पाने को
_________________________ ( आलोक )

Thursday, April 4, 2013

क्यों ये अपनी छोटी सी ज़िन्दगी तलासती है सहारे ?

ये अलग -2 पंक्तिया मेरी कविताओ के कुछ हिस्से है :-
_____________________________________
- क्यों चाँद हँस रहा है क्यों मुस्करा रहे है सब तारे
कुछ दिन के साथ के बाद अपने भी कर लेते है किनारे
कभी हो जाते है सब अपने कभी हो जाते है सब बेगाने
क्यों ये अपनी छोटी सी ज़िन्दगी तलासती है सहारे ?

- हर गम सवाल में है ,हर ख़ुशी सवाल में है
हम क्यों नहीं समझ पाते प्रभु के ये इशारे
कभी हँसता हु मै बेवजह ,कभी रोता हु बार -बार
ना कोई खुशिया हुई हमारी ना कोई गम हुए हमारे

- मूंद के पलकों को खुद सुला देता हु मै
कास कोई इन अस्को को समझ पाता
तो रोती आँखों से भी मुस्करा जाता मै
कास मुझे खुद को बहलाना आ जाये
हर उम्मीद को पानी में बहा जाता
_______________________
मै बेवजह ही हमेशा उलझ सा जाता हु इन बातो में
शायद जवाब नहीं जिनके न पास मेरे न तुम्हारे___( आलोक )