Sunday, December 30, 2012

अगर तुम पूछती हो तो

अगर तुम पूछती हो तो 
की तुम मुझे कितनी अच्छी लगती हो 
तो सोचा एक गीत लिखू और सुनाऊ 
अगर तुम पूछती हो तो ....
अगर तुम जिद करो तो 
चाँद तारे तोड़ लाउ मै 
उन चाँद तारो से तेरी माँग सजाऊ मै 
अगर तुम पूछती हो तो 
इन प्यारी उलझी जुल्फों को मै 
अपनी उंगली से सुलझाऊ 
जब तुम मेरी बाहों में लेटो
जुल्फों में चुपके से फूल लगाऊ
ये जो दिल धडकता है सिर्फ तुम्हारे लिए
उस दिल की सारी बात बताऊ
खोल दू दिल के सारे राज ,तुमसे कुछ ना छुपाऊ
आके तेरे खाव्बों में ,अपनी सांसो से तुम्हे जगाऊ
याद करू मै हर पल तुझको ,ये तुमको बतलाऊ
हर पल रहती हो इन नजरो में
आँखों में तुम्हे तुम्हारी तस्वीर दिखाऊ
कंधे में तुम्हारे सर रखके
अपनी सारी तकलीफ भूल जाऊ
जिस दिल को तुम पत्थर कहती हो
आओ कितना प्यार है तुम्हे दिखाऊ .............आलोक

Friday, December 28, 2012

कब तक इन कुत्तो  के भरोसे ये  देश  चलाओगे 
आखिर कब तक 
अपनी बहन बेटियों को घर में छुपाओगे 
आखिर कब तक 
कब तक बहन बेटियों के सपने टूट्ते देखोगे 
आखिर कब तक 
जब बहने ही ना होंगी राखी किस के साथ मनाओगे 
जिन माँ ने जनम दिया ऊस माँ को कितना रुलाओगे 
उठो लड़ो संघर्ष करो ,इन बलात्कारियो का विधव्नश करो 

Friday, December 21, 2012

बलात्कार आखिर क्यों ? क्यों की वो हमारे माँ ,बहन या बेटी नहीं ?


बलात्कार आखिर क्यों ? क्यों की वो हमारे माँ ,बहन या बेटी नहीं ? 
...............................................................................................
क्या हम लाचार है ,बेबस या बेसहारा है .हमने क्या बिगाड़ा है तुम्हारा ,क्या हमे अपनी मर्ज़ी से जीने का हक़ नहीं है ,क्यों आखिर किस लिए .क्या इस लिए की हम भी किसी के माँ बहन या बेटिया है ,या बरसो पहले वाली सोच के हम एक लड़की है ,एक दिन तो हम वैसे ही अपना सब कुछ अपने माँ बाप ,भाई ,बहन ,बचपन के दोस्त सब को तो तुम्हारे लिए छोड़ देते है ,पर क्यों हमें हमसे हे वक़्त के पहले छीन लेते हो ,तुम्हारे ये चंद  पल के खुशिया हमारी ज़िन्दगी के सारी खुशियों को उन चंद पलो में तबाह कर देते है  ,क्यों नहीं सोचते की किसी दिन तुम्हारी माँ ,बहने इस घिनोने (बलात्कार ) का सिकार होंगी ,उस दिन तुम पे क्या बीतेगी ,आज जो माँ बाप सर उठा के जीते थे ,वो आज मेरे वजह से घर में मुह छिपा के रोते है ,आखिर कब मिलेगा हमे अपनी मर्ज़ी से जीने का ,हसने का अधिकार ....कैसे बताऊ मै भी जीना चाहती हु ,कुछ दिन अपनी ज़िन्दगी के ,मत छीनो मुझसे मेरी ज़िन्दगी मत छीनो ...
....................................................सच कहु तो बहुत शर्म आती है उन हैवानो पे जो ये घिनोना काम करते है .किस ने दिया उन्हें जीने का अधिकार .हम और आप जैसे लोग ,जैसे अपनी बहनों ,माँ की रक्षा करते हो वैसे ही कास तुम दुसरे के माँ ,बहनों के साथ ही ऐसा वर्ताव करते तो आज किसी माँ -बाप को अपनी बेटी को यु घुट -घुट के मरते ना देखना पड़ता और ऐसे बेटियों को बेटिया  होने पे शर्म ना महसूस होता  ....कास तुम इतने दरिन्दे ना होते ......

Monday, December 17, 2012

यादो के किस्से खोलू तो

यादो के किस्से खोलू तो
एक शक्स बहुत याद आता है
मै गुजरे पल को सोचू तो
एक शक्स बहुत याद आता है
अब जाने कौन सी नगरी में
आबाद है मुददत से जा के
मै देर रात थक जाऊ तो
एक शक्स बहुत याद आता है
कुछ बाते थी फूलो जैसी
कुछ लहजे खुसबू जैसे थे 

मै शहरे चमन में टहलू तो
एक शक्स बहुत याद आता है
वो पल भर की नाराजगिया
और मान भी जाना पल भर में
अब खुद से भी रूठू तो
वो शख्स बड़ा याद आता है
है चेहरा चाँद से आँखों में
है उसके ही किस्से बातो में
जब तनहा चाँद को देखू तो
एक शख्स बहुत याद आता है
उसको हँसता देख मुस्कान में
बदल गए मेरे आंशु
जब बहते आंशु मेरे आँखों से
एक शख्स बहुत याद आता है
 



जिसने इस दौर के इंसान किये हो पैदा 
वो मेरा भी खुदा हो मुझे मंजूर नहीं

माँ का साथ है तो

माँ का साथ है तो 
साया ऐ -कुदरत भी साथ है 
माँ के बगैर लगे 
दिन भी रात है 
मै दूर हू तो क्या 
उसका सर पे हाथ है 
मेरे लिए तो मेरी माँ ही 
कायनात है 
दामन में माँ के सिर्फ 
वाफाओ के फूल है 
हम सारे अपने माँ की
कदमो की धुल है
औलाद के सितम उसे हस के
कुर्बान है
बच्चो को बक्स देना
माँ का उसूल है
दिन रात उसने पल पोश के बड़ा किया
गिरने लगा जो मै
मुझे फिर से खड़ा किया .....माँ को ढेर सारा प्यार 

Sunday, December 16, 2012

मैंने कभी उन किताबो के पन्ने पलट के नहीं देखे

मैंने कभी उन किताबो के पन्ने पलट के नहीं देखे 
जिस में तुम्हारे चले जाने का एक जिक्र लिखा था 
तुम चली गयी और अपनी कहानी मेरे पास छोड़ गयी 
तुम्हारी कुछ पहेलिया ,कुछ अनछुये से पहलू 
यु ही तुम्हारी उन लिखी किताबो में रह गयी 
आज जब मिला मौका उन किताबो को पलटने का 
बस पूछो ना वो सारी यादे फिर से ताज़ा हो गयी 
कास वक़्त से पहले तुम्हे रोक लेता तो शायद आज 
यु तन्हाईयो का साथी ना  होता 
इस दिल को अभी भी यकीं नहीं है तुम्हारे चले जाने का 
तुम्हारे सुबह सुबह वो चंचल से मुस्करहट 
तुम्हारी वो बच्चो जैसे अटखेलिया 
आज भी मुझे  गुदगुदाती है ,वो सारी बाते याद दिलाती है 
कैसे कहु की अब हर पल सिर्फ तुम्हारी याद सताती है 
शाम को ऑफिस से देर तलक लौटने के बाद 
जब शाम को दरवाजे पे तुम्हे खड़ा पता था 
मनो सारा दर्द थकान तुम्हे देखने के बाद 
यु कुछ प्यार बन के उमड़ जाता था 
सारी उलझाने भूल के तुम्हारे बाहों में सुकून मिलता था 
वो प्यार वो दुलार कुछ माँ की ममता जैसा था 
मेरी ज़िन्दगी के वो खुबसूरत पल कास कोई लौटा दे 
अब ये कदम बिन तुम्हारे बढते नहीं ,कुछ रुक सा गया हु 
कुछ थम सा गया हु ,शायद तुम बिन अब 
सही से चल भी न पाऊ ,...............बस इतना कहना है की बिन तेरे मै कुछ भी नहीं 

Saturday, December 15, 2012

अब कैसे समझाए इस दिल को

इन चुप चाप सी तनहाईयों में ,जैसे कोई पास आता है 
कुछ इस तरह मेरे पास होने का यकीं दिलाता है 
ये दिल फिर बेकरार हो जाता है ,उनसे मिलने के खातिर 
फिर ये आँख के आँसु .आँखों में हे सहम जाता है 
अब कैसे समझाए इस दिल को 
जो उनके चले जाने का अभी भी यकीं नहीं कर पता है 
इस दिल के भी क्या गलती ,कैसे समझाऊ इस को 
इस पार नहीं उस पर नहीं ,किस पर ले जाऊ इस दिल को 
अब एक जगह ये डूब गया ,कैसे मनाओ फिर
 इस को
माना बड़ा ही नाज़ुक है .फिर समझाऊ इस को
के जाने वाले चले गए ,क्यों तू इतना उदास है
ये दुनिया बहुत बड़ी है ,चल हम अकेले नहीं है
अभी भी हमारे दिल को बहुत से लोगो के तलाश है ......(.आलोक पाण्डेय )



माँ

ये कुछ लाईने मैं अपनी माँ के लिए लिखा हूँ, वैसे माँ को याद करने को लिए कोई दिन नहीं होता है माँ तो हर पल हमारे दिल में रहती है 
***************************************
मुझ को जीवन देना ,यह तेरा उपहार है माँ 
मेरी हर एक साँस ,तेरे नाम है माँ 
क्या बोलू हर पल क्या मन करता है 
बस तेरे साथ वो बचपन के दिन जीने को मन करता है 
वो रातो में नीद न आने पे लोरिय सुना के सुलाना 
वो मेरे सारी गलतियों पे पाप
ा से बचाना
स्कूल जाना तो कभी मुझको मंजूर नहीं था
पर पापा के .पापा के सामने तो मेरे आत्मा भी कापती थी
वो तो तू थी समझाती .स्कूल नहीं जाओगे .
तो पापा के जैसे बड़े कैसे बन पाओगे
मै सोचता था एक दिन जब पापा जैसा बड़ा बन जाऊंगा
मै तब पापा के सामने निडर खड़ा हो जाऊंगा
मुझको क्या पता था ,पापा जैसे बनतो जाऊंगा
पर वो माँ की प्यारी ममता ,
पापा का दुलार कहा से लाऊंगा
लो अब हो गया बड़ा मै ,बिलकुल पापा जैसा
पर माँ तेरे जैसा कभी नहीं बन पाउँगा
सच पास जो तू होती सिने से लग जाता
तेरे बिन अब एक पल रहा नहीं जाता
जिस आंचल के साये में रह के आज इस लायक बन पाया
उस माँ से ही मिलने को मै अब तरस जाता
*******************************
..हो सकता है जो लो घर से दूर रहते हो ,जॉब या किसी मज़बूरी की वजह से वो सब लोग माँ से मिलने के लिए बेक़रार रहते होंगे ,चलो दिवाली के बहाने माँ के दर्शन तो
हो जायेंगे ...आज भी माँ पहले हमे खिलाती है ,थोडा देर से घर आये तो उसे चिंता बहुत सताती है ,जब हम सो जाते है तो एक बार चेहरा देख के खुद भी खा के सो जाती है ..माँ को नमन ** (आलोक )

दिलो के हाल रब जाने तो क्यों फरियाद बाकि है


दिलो के हाल रब जाने तो क्यों फरियाद बाकि है 
जो कहना है वो कह डालो क्यों दिल के बात बाकि है 
नहीं रुकती फ़ना रोके किसी के है हकीकत ये 
करो फिर दोस्त से जल्दी जो मुलाकात बाकि है 
इस दिवाली के पावन अवसर पे ,करो कुछ खास 
दोस्तों-रिश्तेदारों
 से मिलो गले,
और हो सके तो थोडा दुश्मनो से भी कर लो प्यार .......
***********..दीवाली की आप को और आप के पुरे परिवार को बहुत सारी सुभकामनाये ,बड़ो को नमस्कार छोटो को मेरा स्नेह ............... (आलोक पाण्डेय )


कभी न कभी तो आएगी वो


कभी न कभी तो आएगी वो 
देखते ही मुझे थोडा सरमाएगी वो 
जंहा भी होगी खोज लूँगा उसे मै 
और फिर मेरी हो जाएगी वो 
उसकी बातो में चिंता होगी मेरे लिए 
मेरे बिना एक पल भी न रह पायेगी वो 
खुशिया दे दूंगा जंहा भर की इतनी 
की खुश होके गले से लग जाएगी वो 
शायद वो शामिल हो इसी महफ़िल में कंही 
ना भी हो तो कभी ना कभी तो आएगी वो

कभी उनको था

कभी उनको था मेरी हर एक रूह का हिसाब 
आज उनके पास शायद अब वो वक़्त कहा है 
कहने को तो बहुत अपने है इस जंहा में 
पर सब के लिए प्यार के लिए वक़्त कहा है 
हा ये सच है चेहरे पे उदासी रहती है 
पर रोने के लिए किसी के पास वक़्त कहा है 
जीना हो तो जीना सिख लो अकेले ए "आलोक' 
अब इस दुनिया में किसी के लिए किसी के पास वक़्त कहा है 
............................. (स्वरचित ..आलोक पाण्डेय )

वक़्त-वक़्त की बात है

वक़्त-वक़्त की बात है ,वक़्त रहा ही कब किसी के साथ है 
कभी मिले ख़ुशी के आशु ,कभी गमो की पूरी रात है 
वक़्त देता है दो पल के खुशिया तो कैद कर लो जहन में 
क्या पता कल वक़्त में फिर लिखी अंधेरी रात हो .....
- (आलोक )

यु तन्हा अकेले छोड़ जाओगी

कुछ लोग बहुत ही ज़ल्दी दिल में समां जाते है ,जब तक उन्हें हम समझते है वो हमे फिर से तनहा छोर जाते है .............( आलोक )

भटकती फिरता रहता हु तुम्हारी तलाश में 
बंजारों सा ,
हर रोज़ सुबह शाम तुम्हारी एक आहट के लिए 
तुम्हारी तलाश में सुबह ज़ल्दी उठता हु की 
जाने किस घड़ी तुम मिल जाओ
पर मुझे न यकीन था 
तुम अपने आने की वो आहट 
कुछ यु छीन के ले जाओगे 
मुझे एक अनजान मोड़ पे
यु तनहा अकेला छोर जाओगी
तुम्हारी यादों का इक घना जंगल
बसा है मेरे भीतर कहीं...
अब इस जंगल में शायद
कोई गूज ना उठेगी
बस यु यकी ना था
की तुम भी
मुझे यु सताओगी
यु तन्हा अकेले छोड़ जाओगी 

चले दूर तक

चले दूर तक
अजनबी रास्तों पर पैदल चलें। ........ (आलोक )

अजनबी से रास्तो पर 
कुछ दूर तलक पैदल चला 
पर कुछ न कहा 
अपनी इन तन्हाईयो के दायरे से 
बाहर निकलना चाहा 
पर निकल न सका 
इन रिवाजों के सरहदों ने 
कुछ ऐसा बांध रखा है
के हम बहुत दूर तक निकले
पर ज़िन्दगी के
राहो पे दूर तलक साथ न चल सके
कभी मजबुरियो ने
कभी अपनों ने बांध दिया
कोई ज़िक्र न छेड़ो
मेरी भूली हुई
कोई नज़्म न दोहराओ
तुम कौन हो
मैं क्या हू
इन सब बातों को
बस, रहने दो ...अब उसका जिक्र न उठाओ

एक बार जो तू फिर से इशारा कर दे

एक बार जो तू फिर से इशारा कर दे 
हो जाऊ तेरा फिर से दुबारा कह दे 
आने के चाह है तो रोक न खुद को 
मिल जाऊंगा तुझे बस इशारा कर दे 

याद आ ही जाता है वो कभी कभी मुझको

छू सका न फितरत का फन ये आज भी मुझको
आयने में तकती है मेरी सादगी मुझको
ख़ुद पे रख नहीं पता मै कभी कभी काबू
याद आ ही जाता है वो कभी कभी मुझको


लिखने को तो बहुत कुछ था

लिखने को तो बहुत कुछ था... पर नहीं लिखा... क्यूंकि वो हमेशा कहती थी तुम्हारी तो आँखे ही बोलती है... आज सोचता हू काश लिख ही देता तो "वो ख़त तो उसके साथ रहते..."
(¯`*•.¸❤ ♥►- alok .-◄♥ ❤¸.•*´¯)


महफ़िल में आओ

महफ़िल में आओ किसी दिन कर के तुम सोलह सिंगार 
ये जाना 
एक क़यामत वक़्त से पहले भी आनी चाहियी

तुम्हारा नाम लिखने की इजाज़त छीन गयी जब से


तुम्हारा नाम लिखने की इजाज़त छीन गयी जब से 
कोई भी लफ्ज़ लिखता हूँ तो आंखे भीग जाती है

तुम्हे भी याद नहीं और मै भी भूल गया

मैंने तो चाहा प्यार और बस दिल में छोटा सा कोना
मैंने कब चाहा पूजो और मंदिर में बिठाओ तुम

मुझे पिला के ज़रा-सा क्या गया कोई
मेरे नसीब को आकर जगा गया कोई
मेरे क़रीब से होकर गुज़र गई दुनिया
मेरी निगाह में लेकिन समा गया कोई


अब इसलिये भी कोई ज़्यादा नही रुकता है यहाँ 
लोग कहते है मेरे दिल पे तेरा साया है

तुम्हे भी याद नहीं और मै भी भूल गया 
वो लम्हा कितना हसीन था मगर फिजूल गया

मुद्दते गुजरी तेरी याद भी न आई हमे, 
और हम भूल गए हो तुम्हे ऐसा भी नहीं

पहले भी लोग आए कितने ही ज़िंदगी में

पहले भी लोग आए कितने ही ज़िंदगी में
वो हर तरह से लेकिन औरों से था जुड़ा सा
तेवर थे बेरूख़ी के अंदाज़ दोस्ती का
वो अजनबी था लेकिन लगता था आशना सा
 
यूं चलते फिरते रहूँ मैं,
जब तुम हमसे टकराओगे ,
दिल की बात कहोगे पर,
तुम हमसे कह नहीं पाओगे,

रोते हुए जब देखोगे ,
तो भी दिल तुम्हारा रोएगा,
तुम अपना हाथ बढ़ाओगे ,
पर आंसू न पोछ पाओगे,

जब तुमसे कुछ कहूँगा मैं,
तो अनसुना तुम करोगे,
मेरी बात सुन्ना चाहोगे,
पर अफ़सोस …. सुन न पाओगे,

जब काग़ज़ पर मद – होशी से,
की तुम जो मेरा नाम लिखोगे ,
उस नाम को छूना चाहोगे,
पर लिखकर तुम मिटाओगे,



शिकायत उस लिखने वाले से है, तुझसे कोई गिला नहीं

शिकायत उस लिखने वाले से है, तुझसे कोई गिला नहीं,
जो शायद इस कहानी में मेरे किरदार से खफा 

ख़ूबसूरत क्या कह दिया उनको, हमको छोड़ कर वो शीशे के हो गए,
तराशा नहीं था तो पत्थर थे, तराश दिया तो खुदा हो गए

कर दिया इज़हारे-इश्क हमने मोबाईल पर,
लाख रूपये की बात थी, दो रूपये में हो गई

खुशी जिसने खोजी वो धन ले के लौटा

खुशी जिसने खोजी वो धन ले के लौटा,
हंसी जिसने खोजी चमन ले के लौटा !
मगर प्यार को खोजने चला जो वो,
न तन ले के लौटा न मन ले के लौटा

पहले भी लोग आए कितने ही ज़िंदगी में

पहले भी लोग आए कितने ही ज़िंदगी में
वो हर तरह से लेकिन औरों से था जुड़ा सा
तेवर थे बेरूख़ी के अंदाज़ दोस्ती का
वो अजनबी था लेकिन लगता था आशना सा
 

कभी वक़्त मिले तो आ जाना

कभी वक़्त मिले तो आ जाना 
हम झील किनारे जा बैठे 
तुम अपने सुख के बात करो 
हम अपने दुःख के बात करे
Enjoy the journey, enjoy ever moment, and quit worrying about winning and losing."
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कुछ पल तो मुझे नसीब मे दे

शायद मेरी ज़िन्दगी लम्बी नही 
पर छोटी ज़िन्दगी में देखे कई सपने हैं 
कुछ हकीकत बन गए तो कुछ अभी भी सपने हैं 
तमन्ना उन सपनों को पाने की अभी भी है मुझ में 
बस ज़िन्दगी से इतनी सी गुज़ारिश है 
मुझे कुछ पल तो और नसीब में दे
चाह जो है मेरी उसकी राह से मुझे दूर ना करे
मुझे मेरी चाह के साथ कुछ लम्हा तो और दे दे
ये एहसान मैं इसका भुला न पाउँगा
शायद अगले जन्म कुछ ज़िन्दगी साथ में लाऊंगा
अपने हसरतों से कुछ खुशियाँ उन्हें दे जाऊंगा
शायद उस बूढ़े के बुढ़ापे का सहारा बन जाऊंगा
ऐ ज़िन्दगी मुझे कुछ पल तो और नसीब में दे
थोड़ी खुशियाँ तो उनके नाम करने दे
मेरी खुशियों के खातिर जिन्होंने अपनी खुशियाँ है लुटा दी
उनके खुशियों की मोतियों को तो पिरोने दे
धुप में पेड़ बन कर दिया जिन्होंने मुझे छावं
उनके बुढ़ापे का छावं मुझे बनने दे
ऐ ज़िन्दगी मुझे कुछ पल तो और नसीब में दे
उनकी सुनी दुनियां में मुझे कुछ रंग तो भरने दे
बड़े भरोसे से उन्होंने है मुझे पाला
उनके भरोसे पर मुझे तो उतरने दे
बड़ा एहसान होगा तेरा ऐ मेरी ज़िन्दगी
उनके आँखों में बसे आंसुओं को मोतियों में तो बदलने दे
ऐ ज़िन्दगी मुझे कुछ पल तो और नसीब में दे
उनकी खोयी दुनिया को इक बार तो बसाने दे
कहते हैं किसी ने भगवान को नही देखा
जिसने है देखा बस मूर्त ही है देखा
पर मैं ने तो जीता जगता भगवान है देखा
मुझे उनकी चरणों की सेवा तो करने दे
ऐ ज़िन्दगी मुझे कुछ पल तो और नसीब में दे
उनके क़दमों में पड़े छालों को तो दूर करने दे
उन्हें अपना होने का एहसास तो दिलाने दे
शायद मेरी ज़िन्दगी लम्बी नही
पर छोटी सी ज़िन्दगी में देखे कई सपने हैं
कुछ हकीकत बन गए तो कुछ अभी भी सपने हैं
तमन्ना उन सपनों को पाने की अभी भी है मुझ मे
बस इस ज़िन्दगी से इतनी गुजारिश है
कुछ पल तो मुझे नसीब मे दे
कुछ पल तो मुझे नसीब मे दे
कुछ पल तो मुझे नसीब मे दे

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किसने कतरें पर उन परिंदों के


किसने कतरें पर उन परिंदों के
उड़ते थे जो दूर आसमान ?
लहूलुहान दिखती है धरती
किसने दिया ये क़त्ल का फरमान ?

है कौन यहाँ इतना बेरहम
जिसको है खून की प्यास ?
क्यों मिट गया उसके अंदर
दूसरों के दर्द का अहसास ?

तड़पती जानों को देख
कौन यहाँ मज़ा ले रहा है ?
बेगुनाहों को सज़ा ए मौत
कौन यहाँ दे रहा है ?

क्रूरता सहन की सीमा से पार हुई
पर सब खड़े क्यों मौन ?
खून से सनी तलवार जिसकी
पूछते है सब, वो है कौन ?.. भूपेन्द्र कुमार जायसवाल
 

आज खुद पे आई तो सारी सरहदें भूल गया

वो जो मुझको मेरी हदों में रहने की सलाह देता रहा,
आज खुद पे आई तो सारी सरहदें भूल गया

आना तो बहुत चाहा ,पर आ न सका मै माँ

आना तो बहुत चाहा ,पर आ न सका मै माँ 
सोचा था हर बार के तरह दीवाली 
तेरे संग -संग मनाऊंगा 
इस पावन अवसर पे ,कुछ पल तेरे साथ बिताऊंगा 
कंहा सुबह -2 तेरे हाथो के गरम रोटिया खाता 
आज कंहा बस पोहे ब्रेड से हु काम चलाता
सोचा था ,आऊंगा कुछ तेरे हाथो का खाऊंगा
इस दीवाली के बहाने तुझ से पापा से तो मिल पाउँगा
जब तेरे बिना मै नहीं ,तो तू मुझ बिन कैसे रह पायेगी
इस दीवाली पे आलू -गोभी की सब्जी किसे खिलाएगी
अब इस से ज़यादा कुछ न बोलूँगा
नहीं तो सच अब मै रो दूंगा ..
वैसे भी तू दूर कंहा ,है तेरी प्यारी तस्वीर यंहा
बस इस को गले लगाऊंगा ,
अब की बार दीवाली कुछ यू मनाऊंगा
माँ -पापा ...आप सब को दीवाली की हार्दिक सुभकामनाये ..नमन .....( आलोक पाण्डेय )

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मै वापस लौट के आउंगी ये वादा है तुम से

याद है क्या वो दिन तुम्हे जब तुमने कहा था कि 
अभी मुझे एक बार जाने दो 
मै वापस लौट के आउंगी 
ये वादा है तुम से 

तुम्हारे जाने के बाद उस दिन को मैने डायरी में लिख रखा है 
जब भी यु कहो हर पल , जब तुम्हारी याद आती है ,
इंतजार के उन लम्हो को याद करता हु 
और फिर सोचता हु तुम आओगी 
तुमसे बहुत कुछ कहूँगा ,

जी भर के बाते करूँगा ,
और तुम्हे देखता रहूँगा ,
ये दिन और रात उन्ही सपनो में खोया रहता है
की तुम एक दिन आओगी ,
पर जब तेरे आने के सारी घडी बीत जाती है 

और तुम नहीं आती 
मै फिर से उन्ही खयालो में लौट जाता हु 
जिस दिन तुमने कहा था ,
वादा है तुमसे मै आउंगी ........ (आलोक )