Monday, November 25, 2013

हम भी घर को अब सजाने लगे है

तेरे आने को जो शुभ घडी आ गयी
हम भी घर को अब सजाने लगे है

बात है हमारे रिश्ते कि उस डोर का
जिसको हम और तुम निभाने चले है

बाग़ जो अब तक था यंहा सुना पड़ा
उसको फूलो से अब हम मिलाने चले है

इस तिमिर का अँधेरा मुझे सताएगा क्या
आप जो मेरे ख्वाबो में अब आने लगी है

अश्क आँखों के तब से कुछ यु रुक गए
जब से आँखों में आप समाने लगी है

मेरे लब जो एक अरसो से खामोस थे
आप को मुस्कराता देख मुस्कराने लगे है
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आलोक पाण्डेय

Sunday, November 24, 2013

वो एक हसीन सपना

वो एक हसीन सपना
जिसे मै बार -२ देखना चाहता हु
जब तुम मेरे ख्वाबो में आती थी
और कहती हो
कि कहो ना मै तेरी हु
वो तेरा आना दिल पे दस्तक दे जाना
तेरे हाथो कि छुवन का वो एहसास
वो प्यार से मेरे कंधे पे सर रखना
मेरा तुमको बांहो में समेटना
तेरे उलझी हुई लटो को सुलझाना
वो तेरे मेहंदी से रचे हाथो कि लाली
वो गले में तेरी प्यारी मोतियो कि माला
तेरे माथे पे चमकती बिंदिया
वो चूड़ियो कि खनखनाहट
तेरे खामोस लब्जो को
तेरी आँखों में पढ़ना
मगर स्व्प्न का आखिरी पहर
थोड़ी उदासी दे जाता है
जब मेरे हाथो में हाथ रख के
तेरा वो मुझसे वादा लेना कि
कि मै  अँधेरी रातो में
तुम्हारे इतनी करीब होती हु
इस का जिक्र नहीं उठाओगे
सबको सुबह कि पहली किरण
सबको प्यारी लगती है
और मुझे रात का वो अँधेरा
जब तुम सपनो में मेरे करीब होती हो
और कहती हो कहो ना मै तेरी हु
________________________ (आलोक पाण्डेय  )



Saturday, November 23, 2013

मै बनू श्याम तेरा तू राधिका जो बने

मै तेरा बनू जाऊ तू मेरी बने
सफ़र रास्ते के कट जायेंगे
सामने जो अगर तू मुस्कराती रहे
नगमे मै भी कुछ गुनगुनाउ ज़रा
आँख से आँख यु ही मिलाती रहे
ना मै तनहा रहु ना तू अकेली रहे
कास हाथो में मेरे तेरा हाथ हो
कदमो से कदमो का साथ हो
फिर तो जीवन में मेरे है क्या कमी
मै बनू श्याम तेरा तू राधिका जो बने
मेरे कश्ती का जो तू किनारे बने
मै रौशन कर दू इस जंहा को फिर
मेरी अँधेरी राहो का जो तू उजाला बने.……
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 ( कुछ अंश मेरी कविता के ) - आलोक पाण्डेय 

Thursday, November 21, 2013

लौट के आ जा तू भूल के सिकवे गीले

लौट के आ जा तू भूल के सिकवे गीले
कब तलक तू रहेगी  यु मुझसे खफा
जो खता हो गयी हमसे ये सनम
उस खता को तो अब तो तू भूल जा
बिन तेरे अब नहीं मै जी पाउँगा
अब तो चली आ ए मेरी रहनुमा

करीब रह के जो देना हो देना सजा
कबतलक यु ही तू मुझको तड़पायेगी
कैसे मेरे बिन तू भी एक पल रहपाएगी
लब तेरे जब हसे जिस ख़ुशी के लिए
मै वो ख़ुशी दे जाउंगा सदा के लिए

बस तकल्लुफ करना लौट आने कि फिर
दिल बिछा दूंगा तेरी हर एक ख़ुशी के लिए
गीत लिखना अभी जो सुरु ही किया
ये कलम रुक गयी एक तेरी याद में
ख्वाब हमने जो बुने थे चांदनी रात में
वो अब तक अधूरे है एक तेरे साथ बिन

लौट आ अब कि हो गए बहुत दिन
तेरी आँखे भी नम  होंगी मेरे बिन
भँवरे फूलो से कब तक रहेंगे जुदा
ये तो  तू भी समझती है मेरे बिन
फिर जब हम होंगे आमने सामने
तू भी बाहो में मेरे सिमट जायेगी
शारे शिकवे गीले तब मिट जायेंगे
मै तेरा जब और तू मेरी हो जायेगी
______________________ ( आलोक पाण्डेय  )






Tuesday, November 19, 2013

मै चिराग हु जलूंगा

बदल जाये दुनिया चाहे तो तू भी बदल जाये
मै चिराग हु जलूंगा उजाला कर ही जाउंगा
तेरे दामन में जितना भी दम है रोक ले अँधेरे
जब भी जलूंगा तेरा नामो निशा ना होगा। …… आलोक पाण्डेय

सच में ऐतबार अब ना रहा



मै अपनी मोह्हबत के बड़े किस्से सुनाता था
तेरे यादो को मै हर पल गले से लगाता था

भरी रातो में जब मुझको तेरी यादे सताती तो
मै नग्मे प्यार के वही फिर से गुनगुनाता था

तेरी आगोश में सोने का जब दिल मेरा चाहे
तेरी यादो को मै अपना बिस्तर बनता था

पलट के तू नहीं आयी एक बार मिलने को
जिनको देखे बिना तुझको ना सोया जाता था

सच में ऐतबार अब ना रहा ये दोस्त तुझ पर
तू मुझे अपना बनाकर अब तक लुटे जाता था
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www.facebook.com/alok1984 ( आलोक पाण्डेय )





Monday, November 18, 2013

बड़ी शिद्दत से चाहा था तुझे अपना बनाने कि

बड़ी शिद्दत से चाहा था तुझे अपना बनाने कि
मगर आ गयी तू बहकावे में जालिम ज़माने कि

बड़ी मिन्नतें मांगी बड़ा पूजा था पत्थरो को
मगर तुझको तो ख्वाबो कि दुनिया बसानी थी

बड़े हमदर्द आये यंहा  पर तुझ सा नहीं देखा
तुझे एक मै ही मिला था अपना जी बहलाने को

तेरी उम्मीद का जब सारा दामन टूटता दिखे
तो कोशिस करना फिर से यंहा लौट आने कि
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www.facebook.com/alok1984 ( आलोक पाण्डेय )

Sunday, November 17, 2013

तब दर्द सहा नहीं जाता है

जीवन के इस भाग दौड़ में तब दर्द सहा नहीं जाता है
जब एक बच्चा सड़को पे रोटी के लिए हाथ फैलता है

बाप बेचारा करता भी क्या बुढा अब वो जो हो चला
हाथ पकड़ के उठना चाहा पर बेटा बैसाखी दिखता है
तब दर्द सहा नहीं जाता है

बेटे- बहु को फुरसत है ही कंहा सजने और सवरने से
बूढी माँ किचन में होती है रोती आँखों को धोती है

वो बिटिया जो सबसे प्यारी थी सबकी राजदुलारी थी
उस बेटी को दहेज़ के लिए जब ज़िंदा जला दिया जाता है
तब दर्द सहा नहीं जाता है

 उम्र थी खिलौने खेलने कि तब पत्थर उठवा दिया जाता है
हिन्दू -मुस्लमान के दंगो में इंसान को जला दिया जाता है

वो टूटी छप्पर जिससे गरीबी अपना तन ढका करती है
उस छप्पर में भी एक दिन जब आग लगा दिया जाता है
तब दर्द सहा नहीं जाता है
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www.facebook.com/alok1984     (आलोक पाण्डेय  )




मेरी वो जीवन साथी होगी

दुनिया की इस भीड़-भाड़ में कोई तो प्यारा होगा एक दिन तो आएगा जब वो शख्स हमारा होगा 
उसकी आँखे उसकी बाते जुल्फो का साया होगा एक दिन आएगा उसकी हाथो में हाथ हमारा होगा
चेहरे पे प्यारी मुस्कान हाथो में मेहंदी कि लाली होगी पायल के छन -छन से उसके घर में हरियाली होगी 
खुशियो का आँगन होगा प्यारा सा एक जीवन होगा मेरे जीवन के सुख -दुःख का कोई तो सहारा होगा 
चेहरे पे प्यारी मुस्कान आँखों में हया कि लाली होगी जो कदम -२ साथ चलेगी मेरी वो जीवन साथी होगी

Saturday, November 16, 2013

जहन में एक ख्याल है

जहन में एक ख्याल है तू यही आस -पास है
हवा कि ये रागनी गीत तेरे ही गा रही
चिड़ियों को चहचाना पता तेरा बता रही
फूल मुस्करा रहे तारे जगमगा रहे
आँखे भी रातो में ख्वाब तेरे ही दिखा रही
बता ज़रा तू है कंहा किस रास्ते पे तू खड़ी
डगर ज़रा सी मोड़ लू तेरे संघ हो लू मै
लब तेरे कहेंगे नहीं दिल कि तेरी आरज़ू
सामने इक बार आ तेरी आँखों को पढ़ लू ज़रा
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www.facebook.com/alok1984 (आलोक पाण्डेय )

एक माँ ही तो होती है

सारी दुनिया से प्यारी सबसे न्यारी
एक माँ ही तो होती है
जीवन के भाग दौड़ में
पथरीली राहो पे थक हार के
जब मै घर वापस आता हु
माँ के आँचल में सो जाता हु
भूख प्यास मिट जाती है
जब उसके हाथो को मै
अपने सर पे पाता हु
घर से जब भी निकलू मै
माथे को चूमा करती है
कैसा ये निस्वार्थ प्रेम है
मै अब भी सोचा करता हु
नहीं समझ सकता मै माँ
तेरे अंतरमन कि गहराई को
घर में इस देवी को छोड़ के
ना जाने क्यों पत्थर पूजा जाता है
मेरे लिए तो स्वर्ग यही है
हरपल माँ के कदमो को चूमा जाता हु
___________________________ ( आलोक पाण्डेय  )

क्या मुझे जीने का अधिकार नहीं

क्यों मार दिया मुझको क्या मुझे जीने का अधिकार नहीं
क्या मै तेरे जीवन में खुशिया लाऊंगी इसका विस्वास नहीं
हे जन्म देने वाली माँ क्या तुझको भी मै स्वीकार्य नहीं
एक बार सही मुझको भी तो धरती पे आने देना
सह लुंगी  दुःख दर्द सारे पर उफ़ तक ना मै बोलूंगी
जंहा कहोगी रह लुंगी अपना मुह तक ना खोलूंगी
मैंने सोचा था कि एक प्यारी नन्ही गुड़िया बनके जाउंगी
माँ -पापा के जीवन का चाँद सितारा बन के आउंगी
पर नहीं दिया अधिकार मुझे मै इस दुनिया में आ जाऊ
मार दिया पैदा होने से पहले किसकी बिटिया कहलाऊ
एक बार मुझे मौका मिलता घर खुशियो से भर देती मै
नाम कमाती पढ़ लिख के पापा का सर उचा कर जाती मै
______________________________________ ( आलोक पाण्डेय  )


Friday, November 15, 2013

याद जब आती है

याद जब आती है तुम्हारी ज़रा सा रो लेते है
इन आँखों को अश्को से ज़रा धो लेते है

बात निकली है जुबा से तो दिल तक जायेगी
यही सोच के अक्सर रातो को हम सो लेते है

बड़ी शिद्दत से चाहा था तुम्हे अपना बनाने को
मगर तूने कह दिया एक दिन मुझको भुलाने को

इक पल में वादे टूट जायेंगे किस्मत रूठ जायेगी
तुझे अपना बनाने कि वो हसरत छूट जायेगी

मालूम ना था प्यार के रिस्ते कि डोर टूट जायेगी
जिसे हमने सबसे ज्यादा चाहा वही दिल तोड़ जायेगी

बस तेरे करीब आना चाहता हु

जब भी पुरानी बाते जहन में आती है
साये गमो के साथ लाती है
ख्वाब मंजिल के जो दूर तलक हमने देखे
नीद खुलते ही वो सब टूट जाते है
चेहरे पे लेके झूठी मुस्कान मुस्कराना चाहा
पर आँखों से आँशु छलक ही जाते है
जानता हु मै मेरा कोई सपना अपना नहीं होगा
फिर भी आँखों में सुनहरे सपने सजाता हु
कुछ गुजरा हुआ हसीन लम्हा
तेरे साथ बिताना चाहता  हु
सच बस तेरे करीब आना चाहता हु
__________________________ ( आलोक पाण्डेय )

Saturday, November 2, 2013

दीपक एक जलाना तुम भी

दीपक एक जलाना तुम भी मगर प्यार और विस्वास का
उम्मीद कि किरण बनो जिनके सर पे किसी कि छाया ना हो कोशिस यही करना बस तुम किसी रोते चेहरे कि मुस्कान बनो
लग जाओ गले से बिन माँ के रोते उन बच्चो से जिन कि दीवाली एक रोटी को तरस जाती है
कुछ पल बिताओ उन बूढ़े माँ -बाप के साथ जिनकी आँखे बरसो से तुम्हे देखने को तरस जाती है
एक दिया प्रेम का वंहा जलाओ जंहा रोशनी नहीं पहुच पाती है तन ढकने के लिए उनके कुछ करो जो भूखे नंगे सड़को पे सो जाते है
ना कोई रोये भूखा बच्चा ना बेटी हो दहेज़ का शिकार ना हो माँ -बाप के आँख में आंसू कुछ ऐसा हो दिवाली का त्यौहार
चलो आओ हमसब मिल के एक दीपक ऐसा जलाये जिसकी रौशनी हर घर तक जाये दीपक अमन शांति प्यार विस्वास का _________________________
मंगलमय हो आप कि दीपावली ( आलोक पाण्डेय )

प्रकाश पर्व "दीपावली" की हार्दिक शुभकामनाये

दिवाली है खुशियो कि दीपो का त्यौहार 
घर आँगन सबके आये खुशियो कि बहार 
दरवाज़े पे माँ लक्ष्मी का आगमन हो 
कष्ट मिटे सारे जीवन के ,हो बड़ो का हाथ 
जीवन में प्रेम कि फुलझड़िया जले 
सदभावना से सजा हो दिवाली का त्यौहार 
फूलो दीपो से भरी पूजा कि थाल सजाओ 
सब मिल के माँ का गुणगान गाओ 
जीवन सुखमय हो खुले आशाओ के द्वार 
आप सभी को ढेर सारा स्नेह और मिले प्यार 
मुबारक हो दीपो का ये पावन त्यौहार 
___________________________ ( आलोक पाण्डेय )

दीपावली कि शुभकामनाये

दीप खुशियो का यु ही जलाते रहे दीपमाला से घर को सजाते रहे उत्सव है सबको गले से लगाने का आप मुस्कराते रहे गीत गाते रहे
लाख तूफान आये बुझा ना सके हौसलो को हमारे मिटा ना सके लोग आते रहे लोग जाते रहे दीप जलते रहे जगमगाते रहे
पड़े राह में कंही अँधियारा अगर प्यार का एक दीपक जलाते रहे उड़ गया आशिया आंधियो में मगर चिड़िया फिर से खोसले बनाते रहे
देख के चेहरे कि ख़ुशी आप के जी करता है हम भी मुस्कराते रहे हो सके तो मिलो सबसे प्यार से दीप उम्मीद का एक जलाते रहे
क्या भला क्या बुरा जो हुआ सो हुआ लब सदा हमारे यु ही मुस्कराते रहे भूल के आज आप सारे शिकवे गीले मैल सारा दिलो का मिटाते रहे
जश्न है ये उम्मीद ,प्यार ,रौशनी का इसे अपनों के साथ यु ही मनाते रहे मेरे ही नहीं आप के जीवन में भी दीप जलते रहे झिलमिलाते रहे

दीपावली कि शुभकामनाये



लोग मिठाईयो पकवानो में मदहोश होते है
कंही कुछ बच्चे रोटी के लिए बेहोश होते है
हो सके तो भूखो को खाना खिलाओ तुम
घर से बेघर लोगो ज़रा गले से लगाओ तुम
रास्ते में कंही दिख जाये अँधेरी झोपड़ी
एक दीपक प्रेम का वंहा भी जलाओ तुम
 बस यही है प्रार्थना .......................
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आप सभी को दीपावली कि शुभकामनाये
____________________________  ( आलोक पाण्डेय )

Friday, November 1, 2013

पल भर में मेरा तुझसे बिछड़ना बहुत याद आता है

तेरा छुप -छुप के मुझसे आँखे चुराना याद आता है मुझे गुजरा हुआ अपना जमाना याद आता है
जब मिले थे हम पहली बार कॉलेज की कैंटीन में तेरा वो घबराना वो शरमाना सब याद आता है
छोटी -छोटी अदाओ से तुम चुराती रही मेरे दिल को पल भर में हसाना पल भर में रूठ जाना याद आता है
कभी बाते बनाती थी कभी किताबो में रखे ख़त छुपाती थी कभी नाराज़ हो जाऊ जो तुझसे तो मुझको मानती थी
हकीकत जानलेवा थी की एक दिन तू लौट जाएगी पल भर में मेरा तुझसे बिछड़ना बहुत याद आता है